दिलेरी और वर्षा
आज दिलेरी ने लंच समय की बैठक शुरू होते ही इन्द्र देवता को आड़े हाथ लिया। उन को शिकायत थी कि इन्द्र भी अब सैक्शन अधिकारी की तरह हो गया है। छुटी मॉंगों तो छुटी नहीं देता और जब इस की ज़रूरत न हो जैसे कि गर्मी में जब दफतर का कूलर अच्छा लगता है तो एक दिन मॉंगों तो तीन दिन की देने को तैयार रहता है। अब इन्द्र को देखो, दिल्ली में बारिश नहीं है। है भी तो हल्की सी जिस से हुमस और बढ़ जाती है। पसीने के मारे हालत पतली हो जाती है। और जितनी यहॉं से बचाता है, वह हिमाचल में जा कर दे देता है। ठीक जैसे केजरीवाल सड़क मरम्मत इत्यादि से बचाता है और अखबारों पर सारी दौलत लुटा देता है। यह भी कोई तरीका हुआ। सड़क पर गड्ढों की वजह से साईकल चलाना मुश्किल हो जाता है।
दिलेरी के साथियों को इस पर बहुत आश्चर्य हुआ। बारिश तो आती जाती रहती है। कभी कम, कभी ज़्यादा। रास्ते में आई तो साईकल एक तरफ खड़ी कर के कहीं रुक गये। दफतर में हों और आ जाये तो अपनी बला से। बस लंच के वक्त नहीं आना चाहिये। पंचक तो छाता ले कर चलता है, उसे बारिश से कोई शिकायत नहीं। बस पर आता है। स्टैण्ड पर बारिश हुई तो छाता लगा लिया। बस में चढ़े तो छाते की नोक से डर कर सब रास्ता दे देते हैं। और केजरीवाल का क्या। वह जाने, अखबार वाले जानें। बिजली तो सस्ती देता है। दोनों तरफ कहीं कोई उज्र नहीं। पर यह दिलेरी को क्या हुआ।
आदत है कुरेदने की सो सब ने मिल कर कुरेदा। आखिर राज़ खुला।
दिलेरी के फूफा हैं, करनाल या कहीं रहते हैं। कभी कभी दिल्ली आना होता है। आते हैं तो दिलेरी के यहॉं ही ठहरते हैं। जब तक रहते हैं तब तक अमन चैन घर में नहीं रहता। आखिर घर छोटा सा ही तो है। कितने को समा पाये गा। पर फिर भी उन का आना बुरा नहीं लगता क्योंकि वह एक आध किलो सेब ज़रूर ले आते हैं। घर में दावत सी हो जाती है। पर इस बार आये तो सेब नदारद। क्या हुआ, बीवी ने दिलेरी से पूछा। दिलेरी क्या बताये। अब यह भी नहीं कि फूफा से सीधे पूछें। घुमा कर ही पूछना हो गा। आखिर जब नहीं रहा गया तो पूछ ही लिया कि क्या झोला कहीं रास्ते में गुम हो गया।
फूफा तो जैसे भरे पड़े थे। बोले पता है, इस बारिश ने सब सत्यानाश कर दिया। हर तरफ महंगाई। हर ताफ किल्लत। इतनी बारिश हुई हिमाचल में कि सब रास्ते बन्द हो गये। पता है, सेब अब किस भाव बिक रहा है। ढाई सौ रुपये। क्या ज़माना आ गया है। लगता है, भारत की खटिया खड़ी होने वाली है।
सो नतीजा यह कि सिर्फ मेहमान नवाज़ी। फायदा कुछ नहीं। सवा सत्यानाश। ऐसे में इन्द्र देव से नाराज़गी न हो तो क्या हो।
दोस्तों ने ढारस बंधाई। सेब कौन जिंदगी के लिये ज़रूरी हैं। और इस से ज़्यादा साथी कर भी क्या सकते थे। चन्दा कर सेब लेना तो उन के बस की बात नहीं थी।
आखिर प्रस्ताव हुआ, मूॅंगफली का ही सहारा लिया जाये। दिल तो बहले गा। गम तो हल्का हो गा।
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