दिलेरी और जातिगणना
इस चुनाव के मौसम में दोपहर में खाना खाने के बार लान में बैठ कर जो मजलिसें होती हैं, उन का अपना ही रंग है। कुछ तो बस ताश की गड्डी ले कर बैठ जाते हैं। जब गल्त चाल चली जाती है तो वागयुद्ध आरम्भ हो जाता है। पर पास के बैठे गुट ध्यान नहीं देते क्योंकि उन्हें इस को सुनने की आदत है। वह अपने ही विचारों में खोये रहते हैं। दिलेरी के गुट में गर्मागर्म बहस रोज़ की बात है। इस में गर्मी ही होती है, रोशनी नहीं। पर कभी कभी काम की बात भी आ जाती है।
बात कर रहे थे चुनाव की। जो आज का विषय था। भला इस से कौन अछूता रह पाया है। जब चारों ओर इस का शोर हो, अखबार इस से रंगे हों। टी वी पर कुछ और आ ही न रहा हो तो कोई बशर क्या करे। आज का विषय था जाति आधारित जनगणना। जितने उपस्थित थे, उतनी राय। ओर दिलेरी की राय थोड़ी अलग थी। उस ने घोषित किया कि वह पूरी तरह से जातिगत जनगणना के पक्ष में है। पर उस की शिकायत थी कि जो नेता इस की बात कर रहे हैं वह ईसा पूर्व के समय की बात कर रहे हैं। तब से कई जातियॉं समाप्त हो गईं, कई नई आ गईं। और स्वतन्त्रता के पश्चात तो और भी नई जातियॉं बनी। उन की ओर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता।
अब पहले नेताओं को ही लें। यह एक जाति के रूप में विद्यमान है। और जातियों की तरह इस में भी पीढ़ी दर पीढ़ी नेतागिरी चलती है। किसी अन्य का इस जाति में प्रवेश करना कठिन है। जैसे सामान्य रेल के डिब्बे में नये मुसाफिरो के घुसने पर रोका जाता है, वैसे ही यहॉं पर भी होता है। जब कुछ मुसाफिर ज़ोर ज़बरदस्ती अन्दर आ जाते हैं तो वे अगले स्टेशन पर नये का विरोध करते हैं। यह सिलसिला चलता रहता है। वही हाल नेतागिरी में भी है।
पर नेता नाम की जाति में भी उपजातियॉं हैं। इन में बड़े नेता, छोटे नेता, छुटभयै नेता इत्यादि का वर्गीकरण है। कुछ नीचे की उपजाति को चमचे भी कहते हैं। एक नया नाम इसी जाति का अंधभक्त रखा गया है। पर यह चमचे या अंधभक्त की आपस में नहीं बनती। इन के देवता कौन हैं, इस बात को ले कर विरोध होता है। कभी कभी मारपीट की नौबत भी आ जाती है।
दिलेरी का कहना था कि जातिवाद जनगणना में इन सब की जाति और वर्गभेद बताया जाना चाहिये ताकि कोई भ्रम की स्थिति न रहे।
एक और सदस्य ने कहा कि इस जाति का भी ज़िकर किया जाना चाहिये कि कौन सा अफसर ईमानदार है और कौन सा रिश्वतखोर। उस में भी उप जाति का विचार रखा जाना चाहिये। कुछ कह कर रिश्वत लेते हैं, कुछ न न करते लेते है। कुछ तो केवल कलैण्डर डायरी से ही संतष्ट हो जाते हैं। कुछ अन्य दारू मुरगा तक जा पाते है। पर वासतविक उच्च श्रेणी के रिश्वतखोर लाखों की बात करते है। इन के बारे में जनगणना में स्पष्ट विवरण दिया जाना चाहिये। इसी में एक उपजाति और रहती है जिसे ऊपर वाली जाति का सहायक अथवा पेशकार माना जाता है। आम जनता उसे दलाल के नाम से जानती है। जिस प्रकार मंदिर में पूजा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं अथवा दरगाह में चादर चढ़ाने से अल्लाह खुश होते हैं वैसे ही इन दलालों के माध्यम से ही ऊपर की जाति के रिश्वतखोर प्रसन्न होते हैं। इन को भी जनगणाना में दर्शाया जाना चाहिये। ताकि दफतरों में काम कराने के लिये आने वाला व्यक्ति भटकता ही न रहे। वास्तव में कई लोग अपने को इस जाति का बता कर पब्लिक को धोखा भी देते हैं। इन सब को बाकायदा प्रमाणपत्र दिये जाना चाहिये। हर दफतर में बोर्ड भी लगाया जाना चाहिये कि केवल प्रमाणपत्र प्राप्त वर्ग् से ही सम्पर्क करें।
अब बहस इस बात पर शुरू हुई कि कुछ नेता उस जाति के भी है तथा इस जाति के भी, उन को कैसा प्रमाण पत्र देना हो गा। वह नेता भी हैं, रिश्वत खोर भी और दलाल भी।
तब तक लंच का समय समाप्त हो गया था अतः इस पर चर्चा अगले दिन के लिये टाल दी गई।
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