दिलेरी और जन्म दिन
दिलेरी को टिफिन पकड़ाते वक्त दिलेरी की पत्नि ने कहा - आज आते समय नीतू के लिये एक गिफ्ट लेते आना।
- क्यों, कया हुआ?
- अरे कल उस का जन्म दिन है।
- फिर आ गया जन्म दिन।
- पूरे एक साल बाद आया है। आना ही था।
- महीने की 27 तारीख को जन्म दिन। तुम चार रोज़ रुक नहीं सकती थी क्या?
- मैं ने भी भगवान से यही कहा था। रुक नहीं सकते क्या। अभी महीना खत्म होने दें।
- फिर?
- भगवान ने कहा कि यह ईसाई कलैण्डर मैं नहीं मानता। मेरा फैसला है कि बच्चा एकादशी के रोज़ खुली हवा में सांस ले।
- और वह एकादशी भी 27 तारीख को ही होना थी। वाह भगवान।
- सुनो, क्या तुम यह सुझाव नहीं दे सकते कि तन्खाह हर एकादशी को मिले। दो बार मिले गी तो कम इंतज़ार करना पड़े गा। मैं ने सुना है कि अमरीका में वेतन हर शुक्रवार को मिलता है ताकि लोग शनिवार तथा रविवार को बाज़ार कर सकें, सिनेमा देख सकें।
- यू डी सी का काम सुझाव देना नहीं है। उस के लिये पहले कोई आवक पत्र हाोना चाहिये।
- क्या यह नहीं कह सकते है कि यह मेरी सोच है।
- मेरी सोच?
- क्यों?
- इतनी मुद्दत हो गई साथ रहते, अभी तुम को पता नहीं चला कि सरकार में रहते हुये सोचना मना है।
- तो फिर नये सुझाव आते ही नहीं। अजीब बात है। मन्त्रीगण तो रोज़ नये नये ब्यान देते हैं कि यह नया है, वह नया है।
- उस के लिये सरकार ने कई आदमी मकुरर कर रखे हैं। उन का काम सुझाव देना है।
- उन को तन्खाह कौन देता है।
- सरकार देती है। ओैर कौन दे गा।
- सो वह भी सरकारी हैं तो फिर सोचते कैसे हैं।
- उन को रखा ही सोचने के लिये है। उन का नाम ही कन्सलटैण्ट है।
- बाहर वाला कोई सोच ही नहीं सकता?
- नहीं, ऐसा नहीं है। कई लोग थिंक टैंक बना लेते हैं। वे सोचने का काम कर सकते हैं। और वह सरकार को भी अपने सुझाव दे सकते हैं।
- तो मैं थिंक टैंक बन जाती हूॅं।
- नहीं। तुम नहीं बन सकतीं।
- क्यों?
- उस के लिये पहले सरकार में ऊॅंचे पद पर काम करना ज़रूरी होता है।
- बेकार बात। जब सर्विस में रहते नहीं सोच सकते तो बाद में कैसे सोच सकते हैं। आदत ही न सोचने की बन गई हो गी।
- ऐसा नहीं है। रात भर ऑंखें बन्द कर सोते हैं तो इस का यह मतलब नहीं कि सुबह ऑंख नहीं खोल सकते। बल्कि उस वक्त ज़्यादा अच्छा दिखता है।
- कोई तो रास्ता हो गा आम लोागों को सुझाव देने का।
- तुम तलाश करो। मुझे तो दफतर जाने दो।
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