दिलेरी और कॉंग्रैस अध्यक्ष
आज दिलेरी सुबह उठा तो उस की दायिनी ऑंख फड़क रही थी। अनिष्ठ होने की यह पूर्वसूचना थी जो कि लंच बैठक में घटी।
हुआ यह कि उस दिन बात कॉंग्रैस अध्यक्ष के चुनाव पर आ गई। एक ने कहा — यह सब नाटक है। परिणाम तो पता है। और नाटक के बाद श्री मनमोहन सिंह ही तो अध्यक्ष बनें गे। दूसरे ने कहा मलमोहन सिंह? वह तो लड़ ही नहीं रहे।
पहले ने कहा कि वह अलंकार के रूप में बात कर रहा था। वैसे चाहो तो मनमोहन सिंह द्वितीय कह लो। यह बात सब को पसन्द आई। एक ने शशि की बात की। वह बेचारा वैसे ही मारा गया। दूसरे ने कहा वह भी नाटक् मण्डली का पात्र है। निदेशक के कहने पर ही अभिनय कर रहा है।
दिलेरी और ही लाईन पर चल दिया। कहने लगा कि वह राजस्थान वाले भी तो थे। बिल्कुल तैयार बैठे थे और मंज़ूरी भी मिल गई थी। पर तकलीफ यह हुई कि एक ही काम करने का आदेश हुआ। अब वह है जन शेकस्पीयर, अमरीका के काली दास।
किसी ने टोका अमरीका नहीं इंलैण्ड। दिलेरी बोले अरे क्या फर्क पड़ता है अमरीका हो कि इंगलैण्ड। चलो गोरों का कालीदास कह लेते हैं। हॉं तो उस ने कहा था कि नरक में राजा रहना बेहतर है, बजाये स्वर्ग में नौकर बनने के।
अब हुई किरकिरी शुरू। एक ने कहा कि राजस्थान को नरक कह रहे हो, यह शर्म की बात हैं। महाराना प्रताप जहॉं से आये वह नरक। होश में रहो। दिलेरी को पता नहीं क्या सूझी। आ बैल मझे मार। बोले यह मत भूलो कि मानसिंह भी उसी राजस्थान से आये थे। बेच दिया अपने को और अपनी बेटी को। तीसरे ने कहा कि एक ने नौकर बनना स्वीकार किया, दूसरे ने राजा।
पर राजस्थान के प्रवक्ता नहीं मानें। कहने लगे राजस्थान का निरादर तो मैं स्वीकार कर ही नहीं सकता। जौहर जहॉं पर कर के आन बचई जाती है, केसरिया पहन कर युद्ध लड़ा जाता हैं, उसे नरक कहना, हद हो गई।
मामला बढ़ता और धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे बनता, इस से पहले दूसरों ने बीच बचाव किया। एक और ने कहा, क्यों बिदक रहे हो, भई। चलो जी कोउ नौकर बने, हमें कोैन सलाम करना है।
और महफिल उठ गई।
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