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दिलेरी और ओवर टाईम

  • kewal sethi
  • Dec 23, 2023
  • 3 min read

दिलेरी और ओवर टाईम

वैसे तो दोपहर की मीटिंग बहुत चिन्तामुक्त होती है। उस में हर तरह की ऐसी बात हो सकती है जिस में अधिक गम्भीरता न हो। जैसे कभी इस पर बात होती है कि राहुल ने कल अपने भाषण में क्या फुलझड़ी छोड़ी। या फिर इस पर बहस होती है कि आज मोदी ने बारह समारोहों के उद्रघाटन बटन दबा कर किये, कल कितने का करे गा। इन में से कितने उत्तर प्रदेश में हों गे, कितने गुजरात में।

पर उस दिन वातावरण बहुत गम्भीर था। कारण - अमन कालिया।

अमन कालिया उन जैसा ही यू डी सी था। उस का वहॉं होना गल्त तो नहीं था पर था भी। कारण वह नेता था और वह भी ट्रेड यूनियन साईड पर। बहुत कर्मठ कार्यकर्ता था, यही उस के साथ मुसीबत थी। वह हर समय टैंशन में रहता था औेर दूसरों को भी टैंशन देता था। इस कारण ही सब उस के आने से घबराते थे।

आज उस का निशाना दिलेरी पर था। उस ने बात शुरू की।

- दिलेरी, मैं ने सुना है कि तुम गुरूवार की शाम छह बजे तक दफतर में थे।

- हॉं, वह थोड़ा समय लग गया।

- तुम ने एस ओ से ओवर टाईम के लिये लिखवा लिया।

- उस की ज़रूरत नहीं थी।

- क्यों ज़रूरत नहीं थी। ज़रूरत हो या न हो, अगर देर तक बैठे हो तो ओवरटाईम के हकदार हो। अपना हक कभी नहीं छोड़ना चाहिये।

- दर असल मेरी गल्ती भी थी।

- गल्ती किसी की हो पर ओवर टाईम तो ओवरटाईम है।

- यू एस ने एक फाईल मॉंगी थीं उस को डूॅंढने में समय लग गया। गल्ती तो मेरी ही थी। दो दिन पहले तो डील की थी।

- कितने बजे मॉंगी थी।

- पौने पॉंच बजे।

- यानि दफतर बन्द होने से सिर्फ पंद्रह मिनट पहले। यह अफसर लोग होते ही ऐसे हैं। सारा दिन आराम करते हैं। शाम को याद आता है, यह फाईल चाहिये, वह फाईल चाहिये। असल में सिर्फ इन्हें बहाना चाहिये कर्लकों को परेशान करने का। साफ इंकार कर देना चाहिये। मेंरा टाईम हो गया है, बस पकड़ना हैं। चार्टर बस है।

किसी ने टोकते हुये कहा -

- दिलेरी तुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं।

शेष ने भी ताली बजा कर समर्थन किया।

इस बीच एक यु डी सी बीच में कूद पड़े - आ बैल, मुझे मारं। बोले —

- पर यह यू एस हैं बड़े दिल वाले। किसी दिन लेट आओ तो कुछ नहीं कहते। अगर एस ओ शिकायत भी करें तो कह देते हैं ‘अरे रोज़ काम करता है। एक दिन लेट हो गया तो क्या। घर के भी कई काम करने ज़रूरी होते हैं। रहने दो।

- हॉं, हॉं। तुम तो अफसर की तर्फदारी करो गे ही। मैं जानता हूॅं। उस दिन उस के कमरे मे पंद्रह मिनट थे, क्या कर रहे थे।

वह भी कम नहीं थे। शाण्द नेता बनने की तैयारी में थे । बोले -

- फाईल समझा रहा था, इश्क नहीं फरमा रहा था।

- एक ही बात है।

- और मैं अगर पूछूॅं कि तुम क्या कर रहे थे उस के कमरे में तो। और वह भी पॉंचं बजे के बाद।ं

- मैं तो आप लोगों के हक के लिये बात कर रहा था। न पानी की सुविधा हेै न पंखे की। एल डी 3 में चार दिन से पंखा नहीं चल रहा है। बाबू गर्मी से परेशान हैं पर एडमिनिस्ट्रेशन को कोई फिकर ही नहीं।

- तुम जो हो फिकर करने वाले।

- किसी को तो करना है।

- ओवर टाईम मॉंगा क्या? किसी ने जानना चाहा।

- यूनियन का काम था, दफतर का नहीं। तुम्हें अपने आराम से ही मतलब है, कभी दूसरे का भी सोचना चाहिये।

किसी ने बीच में ही कहा -

- आज के लिये बहुत सोच लिया। बाकी फिर कभी। लंच का समय तो कब का समाप्त हो गया है। अभी सब की एक्सप्लेनेशन मॉंगी जाये गी सिवाये अमन कालिया कें।

- किसी की नहीं मॉंगी जाये गी। कहना यूनियन की मीटिंग में थे। मेरा नाम ले देना। सब सम्भाल लूॅं गा।

और सभा बरखास्त हो गई।

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