त्रासदी ही त्रासदी
वर्ष गाॅंठ इस मार्च में जब कोविद ने मनाई
एक बार दौबारा पूरा देश कर उठा त्राहि त्राहि
फिर से अखबारों के पन्ने अंकों से गये भर
किस राज्य में कितने हैं, रखते पूरी खबर
महाराष्ट्र सब से आगे है, अखबारों ने बतलाया
केरल ने प्रति हज़ार अधिक मरीज़ होना बतलाया
पंजाब ने आवाज़ दी वह इस मामले में नहीं पीछे
तय न हो पाता कौन राज्य ऊपर है कौन है नीचे
ऊब गया जब इस तकरार से दुखी अपना मन
टाईम मशीन से मैं पहॅंचा भूतकाल में तत्क्षण
जाने क्यों उस को बस्तर ज़िला ही था भाया
और लुत्फ यह कि मीडिया अपने साथ ले आया
उस समय का बस्तर ज़िला था केरल से बड़ा
था प्रदेश के बाकी ज़िलों से वह अलग खड़ा
पर साथ मीडिया था उस ने पूरा हाल बताया
फेसबुक टिविट्टर इंस्टाग्राम था वह साथ ही लाया
हैज़े की खबर वहाॅं पर जब मीडिया ने थी पाई
हैडलाईनों से भर गया करामात यह प्रेस ने दिखाई
फेसबुकिये, टिवट्टराटी किस्से बतलाते थे नये नये
कहाॅं कितने बीमार पड़े, कितने मरे, कितने बच गये
300 से अधिक मरीज़ थे दंतेवाड़ा का यह हाल
पर बीजापुर भी दूर नहीं था फेसबुकियों के अनुसार
गीदम का अपना ही था कहना सुनो तुम ए हज़ूर
घरों की संख्या से देखो तो दंतेवाड़ा बहुत है दूर
कोंडागाॅंव कहता मत मरीज़ों की संख्या पर जाओ
कितने मरे इस बीमारी से ज़रा नज़र दौड़ाओ
हम ने ली हे इस दौड़ में तो बाज़ी मार
दंतेवाड़ा में तीन मरे तो हमारे यहाॅं मरे चार
पानी खराब भोपालपटनम का सुखमा भी नहीं कम
कीड़े तैरते हुये मिलें गे तुम्हें इस में हर दम
पीना पड़ता है ऐसा ही यह सदा की है रीत
बदला न यह निज़ाम गई कई सदियाॅ बीतं
कलैक्टर ने किया फैसला नीचे खबर भिजवाई,
दंतेवाड़ा बीजापुर नारायणपुर सब में थी ताली बजवाई
की प्रार्थना जगदलपुर में और आरती काॅंकेर में उतारी
दंतेश्वरी माई की जय भी नेताओं ने खूब बुलाई
बीच में बारिश ठहर गई पानी होने लगा साफ
प्रकोप हुआ कम कुछ ली राहत की थी साॅंस
खुश हुये अफसर सारे और दी एक दूसरे को बधाई
कर ली बीमारी काबू भोपाल फौरन खबर भिजवाई
पर कुदरत को क्या कहें कुछ और ही थी उस ने ठानी ं
फिर आया बारिश का रेला फिर गदला हुआ था पानी
मरीज़ों की संख्या बढ़ने लगी बात थी यह अब पुरानी
एक बार फिर सोशल मीडिया ने इस बात को उछाला
एक मत सभी, निकला है अफसरी अकल का दिवाला
इसी बीच अफसरों के हाथ और एक शगूफा आया
भोपाल से आया आर्डर और ज़िलों ने इसे अपनाया
पंचायतों के चुनाव हों गे मच गया चारों ओर शोर
सब ज़िलों में हो रहे तो बस्तर कैसे दे इन को छोड़
बीमारी तो अपनी जगह है चुनाव प्रजातन्त्र की शान
सब व्यस्त हुये इस में मरीज़ों का भूला था ध्यान
मीडिया को मिली नई बात तो गये हैंज़े को भूल
जिस में हो मसाला, उसी को अपनाने का असूल
इतने समाचार आये इस बारे में कुछ सच कुछ झूट
इतना भार पड़ा इन का टाईम मशीन आखिर गई टूट
बस्तर छूटा वहीं पर और हम आ गये वर्तमान में
पर इन सब बेदर्द यादों के मारे रहे कुछ परेशान से
लाईब्रेरी गये ख्ंगाले उस ज़माने के सारे अखबार
इस दूसरे दौर के हैज़े के कितने हुये थे शिकार
इधर देखा, उधर देखा, पढ़ा सब अखबार बार बार
मुशकिल से मिल पाई खबर छटे पृष्ठ पर सतरें चार
ढाई सौ मरे, पर बच गये मरीज़ बारह सौ पचहतर
और कई हज़ारों को गई यह बीमारी बस छू कर
तब मन से कहा क्या है इस का राज़ बतलाओं
चारों तरफ शोर मचा है, तब थे चुप क्यों समझाओं
मन ने तब हम को यह था तरीके से सम्झाया
अन्तर्राष्ट्रीय बीमारी है कोविद यह याद कराया
हैज़ा तपेदिक तो हैं दकियानूसी ऐसा तुम मानो
नई बात तो कोविद ही है, इस बात को पहचानो
पंद्रह साल पहले मचा एच आई वी का कितना शोर
कई सम्मेलन कई अभियान हो रहे थे चारों ओर
आज नहीं है कोई जगत में नाम लेवा, यह असूल
वह अपनी जगह है, लोग अपनी जगह, गये उसे भूल
हमेशा से रीत यही बात अलग नगरों की, संसार की
बस्तर जैसे़े ज़िलों की बात न बताती सरकार भी
सब तकनालोजी, सोशल मीडिया का है यह जाल
कहें कक्कू कवि इसी ने ज़माने की है बदली चाल
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