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तूफान

kewal sethi

तूफान


इक तूफान था इक जि़जि़ला सब को पामाल कर गया

जाये स्कूं कोई न बची सब को खस्ता हाल कर गया

चली ऐसी हवा कि सब तरफ रह गई बस बरबादियां

न रहा कोई अहले सफर न रह पाया कोई आशियां

हवाले कयामत हुआ हर शख्स वहीं पर, जहां था

हुआ मुल्के अलमौत के सुपर्द जो ज़द्दे तूफां आ गया

शमालो जनूब मशरिको मगरिब सब की बदनसीबी थी

जिस तरफ चल उठा सैलाब वही राहे बरबादी थी

न रहा कुछ भी बस इक नाला फुगां रह गया

सुना जिस ने यह किस्सा बरबादी सकता रह गया


(नवम्बर 1984 - पता नहीं सिक्खों के खिलाफ चले अभियान का जि़कर है या किसी प्राकृतिक कोप का। पर अधूरा ही है।)

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