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kewal sethi

तलाश खुशी की

तलाश खुशी की


पूछते हैं वह कि खुशी किस चीज़ का नाम है।

खरीदना पड़ता है इसे या फिर यह सौगात है।।

मिल जाती हे आसानी से या पड़ता है ढूॅंढना।

चलते फिरते पा जाते हैं या पड़ता है झूझना।।

क्या हैं इसकी खूबियाॅं, क्या इस में खास है।

मिठास है इस में भरी या खट्टा मीठा स्वाद है।।

क्या खुशी की भी होतीं हैं कई कई किस्मात।

कभी कम तो कभी ज़्यादा जैसे भी हों हालात।।

कछ कहते कि यह होती है केवल मन की बात।

मन की मन ही जाने नहीं किसी के बस की बात।।

मन ने पूछे थे मस्तिष्क से यह सब सवालात।

और फिर खुद ही दिया इन सभी का जवाब।।



खुशी वह शय है जिस के लिये रहता हर कोई परेशान।

जितनी परेशानी हो, उतनी ही दूर रहता इस का अहसास।।

दिल के अरमान पूरे हों जब, तो खुशी मिलती है हमें पूरी।

पर अरमानों का छोर नहीं, इस लिये खुशी रहती है अधूरी।।

मुनि, ज्ञानी, दार्शनिक, वैज्ञानिक सभी हैं इस खोज में हारे।

चार्वाक ने ऋण के घृत में पाया इस को, कुछ स्वर्ग सिधारे।।

कुछ ने कहा मोक्ष में ही खुशी आनन्द का अनन्त खज़ाना।

कुछ ने केवल निष्काम कर्म को ही आनन्दस्रोत है माना।।

कहते कुछ भूतकाल में ही समाई खुशी सारी, छोड़ो तलाश।

पर कई ज्ञानी जन कहते रखो भविष्य में ही खुशी की आस।।


मेरा विचार तो यह कि है आप को अपार खुशी का वरदान।

यदि भूतकाल की कोई घटना नहीं करती आप को परेशान।।

वही खुशी है जब आप किसी बात को याद कर मुस्कराते हैं।

कहें कक्कू कवि, तभी ही आप अपने को प्रसन्नचित पाते हैं।।

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