तत्व मीमांसा
इस संसार का आधार क्या है यह विचार चिन्तकों को, चाहे वह दार्शनिक हों या वैज्ञानिक, सदा ही उद्वेलित करता रहा है। इसे केवल संयोग नहीे माना जा सकता कि वह दोनों लगभग एक सी मंजि़ले तय करते हुए एक से परिणाम पर महुँचे हैं यधपि दोनों के रास्ते तथा पद्धति अलग रहे हैं।
भारतीय दर्शन के प्रथम चरण में पाँच महाभूतों को आधार माना गया था यधपि कुछ ने आकाश को महाभूत नहीं मान कर केवल चार को ही आधार माना। जीव को अलग से आधार तत्व माना गया। जीवों की संख्या असीमित थी। विज्ञान में भी प्रथम चरण में विभिन्न धातुओं व अधातुओं को अलग अलग पदार्थ माना गया। इन्हीं के संयोग से नये पदार्थ बने। कुछ पदार्थ ऐसे भी थे जिन का निर्माण केवल प्राणधारियों जीवों द्वारा ही किया जा सकता था। इन का अध्ययन आरगैनिक रसायण शास्त्र के अन्तर्गत किया गया। इन का निर्माण प्रयोगशाला में नहीं हो सकता है यह माना गया।
इस विविधता से मनुष्य संतुष्ट नहीं हुआ। मनीषियों ने इस पर विचार किया तथा इन की एकरूपता के बारे में विचार व्यक्त किये। यह माना गया कि वास्तव में यह सब पदार्थ केवल एक मात्र प्रकृति के ही रूप हैं। इन की उत्त्पति प्रकृति ही से हुई है। जीव भी केवल एक पुरुष के ही अलग अल्रग रूप हैं। उधर वैज्ञानिकों ने यह पाया कि अणु -एटम- किसी भी पदार्थ के हों उन के मूल में प्रोटोन, न्यूट्रोन तथा एलैक्ट्रान हैं जो मूलत: सभी धातुओं तथा अधातुओं में एक से ही हैं। यह भी पाया गया कि आरगैनिक पदार्थ अलग प्रकार के नहीं हैं। उन को प्रयोगशाला में भी बनाया जा सकता है तथा उन की संरचना भले ही थोड़ी जटिल हो पर उस के आधार में वही तत्व हैं तो दूसरे पदाथो में हैं। इस काल में दो मौलिक सिद्धाँत माने गये। एक यह कि ऊर्जा की मात्रा सदा एक सी रहती है। इसे अलग अलग रूप में बदला जा सकता है। विधुत शक्ति, गति से उत्पन्न शक्ति (काईनैटिक एनर्जी), स्थान से उत्पन्न शक्ति (पोटैंशल एनर्जी) इत्यादि इस के रूप हैं पर कुल मात्रा एक ही रहती है। इसे कन्सरवेशन आफ एऩर्जी सिद्धाँत के नाम से पुकारा गया।
हमारे विचारक इसी पर नहीं रुके। उन्हों ने गहराई से सोचा तथा इस परिणाम पर पहुँचे कि अन्तिम रूप से एक ही सत्ता होना चाहिये। उसी से समस्त ब्रह्रााँड उत्पन्न हुआ है। एक ही सत्ता अलग अलग रूप धारण करती है। उन्हों ने इस सत्ता को ब्रह्रा का नाम दिया। ब्रह्रा से ही सकल जगत की उत्त्पति होती है और अन्तत: सब ब्रह्रा में ही लीन हो जाता है। यह एक चक्र है जो कभी समाप्त नहीं होता। दूसरी ओर वैज्ञानिक भी अन्तत: इसी परिणाम पर पहुँचे कि एक ही तत्त्व मूल है तथा वह है ऊर्जा। आईंस्टीन ने इस बात को सिद्ध किया कि पदार्थ तथा ऊर्जा एक दूसरे में परिवर्तनीय हैं। न्यूट्रोन, एलैक्ट्रान अथवा प्रोटोन ही मूल तत्व नहीं हैं। उन के आधार में ऊर्जा है और उन का एक दूसरे में परिवर्तन होता रहता है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप ऊर्जा या तो प्राप्त होती है या उसे ग्रहण किया जाता है। मैक्स पलैंक ने प्रकाश के दो रूप होने के बारे में बताया कि वह एक तरंग तथा क्वाँटा दोनों हो सकते हैं। एक ऊर्जा का रूप है दूसरा पदार्थ का। उसी तरह जिस प्रकार ब्रह्रा जीव तथा प्रकृति दोनों का रूप धारण कर सकता है। दोनों मूलत: एक ही हैं।
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