kewal sethiJul 23, 20201 min readडायिरीडायिरीमैं ने समय की गति को डायिरी में बांध देना चाहालेकिनहर शाम ऐसा हुआहम बंधे रहेसमय उड़ता रहा(होशंगाबाद - 1964)
डायिरीमैं ने समय की गति को डायिरी में बांध देना चाहालेकिनहर शाम ऐसा हुआहम बंधे रहेसमय उड़ता रहा(होशंगाबाद - 1964)
the agenda is clear as a day just when i said rahul has matured, he made the statement "the fight is about whether a sikh is going to be allowed to wear his turban in...
महापर्वमहापर्व दोस्त बाले आज का दिन सुहाना है बड़ा स्कून है आज न अखबार में गाली न नफरत का मज़मून है। लाउड स्पीकर की ककर्ष ध्वनि भी आज मौन है।...
पश्चातापपश्चाताप चाह नहीं घूस लेने की पर कोई दे जाये तो क्या करूॅं बताओं घर आई लक्ष्मी का निरादर भी किस तरह करूॅं नहीं है मन में मेरे खोट...
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