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  • kewal sethi

डायिरी

डायिरी


मैं ने समय की गति को

डायिरी में बांध देना चाहा

लेकिन

हर शाम ऐसा हुआ

हम बंधे रहे

समय उड़ता रहा

(होशंगाबाद - 1964) 

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