जादू का डिब्बा
घर में महाभारत छिड़ा हुआ था। पति पत्नि दोनों ही दफतर में काम करते थे। पति और पत्नि में कुछ दिनों से अनबन चल रही थी। इस कारण धर का माहौल कुछ गड़बड़ा गया था। उस दिन पति महोदय घर आये तो काफी झुंझला रहे थे। आज दफतर में उन की खिंचाई हुई थी।
जैसे कि अक्सर होता है कि ऊपर वाले की डॉंट नीचे पहुॅंचाओ और पाक साफ हो जाओ। वह मौका दफतर में तो मिला नहीं अतः उसे साथ घर ही ले आये। जैसे ही पत्नि घर में दाखिल हुई, बरस पड़े।
‘‘पता नहीं कौन सी चीज़ कहॉं रख देती हो। सोचा चाय पी लूॅं पर न चीनी मिली है न चाय की पत्ती।
उधर बेटे ने भी हॉं में हॉं मिलाई। मुढे कालेज में डॉंट पड़ी पर घर में खाना नहीं मिला। जब से आया हूॅं, भूखा ही बैठा हूॅं।
बेटी कहॉं पीछे रहने वाली थीं उस ने भी चिपकाया। फ्रिज में न आईसग्रीम है, न ही कोई चाकलेट। अब मन करे तो कोई क्या खाये।
पन्ति को तो शॉंत रहना ही था। यह कोई नया किस्सा थोड़े ही था। किसी को कद्दु की सब्ज़ी पसन्द है तो कोई उसे देखना भी नहीं चाहता। किसी को भिण्डी ठीक से भुनी न हो तो नाक भ्ज्ञैं चढ़ा लेता है तो कोई दाल में पानी अधिक होने से परेशान है।
वह शॉंत भाव से बोली। किसी ने फ्रिज खोला कया।
पति झल्ला कर बोलेे — पागल समझती हो क्या। वह तो खोलना ही था। उस में थोड़ा सा दूध ही था बस। बिना पत्ती के उस का क्या करता। बेटे ने कहा दूध और बस एक रस का टुकड़ा, और कुछ नहीं। बेटी ने सिर्फ घूर कर देखा, बोली नहीं पर साफ ज़ाहिर था कि वह कुछ जली कटी ही कहे गी।
जल्दी से पत्नि ने कहा। एक डिब्बा भी तो था।
वह तो था, तीनों ने एक साथ कहा। पर क्या डिब्बा जादू का था जिस से जो मॉंगते, वह मिल जाता।
जादू तो नहीं पर उस में एक पर्ची थी जो पही काम करती।
क्या था डिब्बे में, तीनों ने पूछा।
टैलीफोन नम्बर। जो चाहिये वह मंगाओ और जी भर कर खाओ या पियो।
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