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जनता क्यों हारी

kewal sethi

it is normal that after every elections, reasons, or rather excuses, for the defeat of a party, are sought.the newspapers discuss it for weeks (there was no private tv channels in 1980 to which this poem refers). here is my take on reasons for the defeat of janata party in 1980.



जनता क्यों हारी


लोग लुगाई मिल बैठे लागन करन विचार

कौन कारण ऐसो भयो जनता गई हार

जनता गई हार, सभी ने अपनी रा बताई

कोउ वजा किसी के माथा में न आई

तब बोले कवि के के सुनो हमारी बात

वोटर को पड़ गया नैगेटिव वोट का स्वाद


बोले हरिया चौधरी यह नैगेटिव वोट क्या है भाई

वोट का मतलब मोहर लगाना यह सब ने बताई

मिले जिस को ज़्यादा वोट वही तो चुन कर आते

हम तो किसी के खिलाफ मोहर नहीं हैं लगाते

समझाते तब के के कवि चीख रह सब अखबार

प्रजातंत्र का असली मतलब है बदल देना सरकार


बोले अडि़यल चौधरी मत हम को तुम बहलाओ

जानते प्रजातन्त्र का अर्थ सभी अपनी सरकार बनाओ

अपनी सरकार बनाओ, चुनो अपने ही नेता

होता सब से आगे वही प्रधानमंत्री पद है लेता

कहें के के कवि फिर यही समझ लो प्यारे

विरोधियों के वोट बंट गये, हार गये बिचारे


न मानें बुद्धु चौधरी फिर से यह फरमायें

यह सब तो हीले हवाले असली बात बतायें

असल बात बतलायें, क्यों विरोधी ही टकराते

जनता विरोधी वोट क्यों नहीं हैं बट जाते

कहें के के कवि तब, सुन लो दिल पर रख कर हाथ

वोट नहीं दिये जनता ने इस लिये खा गई जनता मात


(दिल्ली 9ृ.1.1980)

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