घर का काम
- kewal sethi
- Aug 16, 2020
- 2 min read
घर का काम
अरे भाई जल्दी करो अब काहे की देरी है
आमलेट बन रहा है या बीरबल की खिचड़ी है
मालूम है मुझे आज अभी दफतर जाना है
सी एम ने बुलाया है पूरा केस समझाना है
अरे हाँ जानती हूँ तुम रोज़ बनाते हो ऐसा बहाना
डायनिंग टेबल पर आते ही शुरू करते हो शोर मचाना
लेते हो नाम सी एम का और जल्दी चले जाते हो
बैठ का वहाँ इंतज़ार में पूरा एक घण्टा बिताते हो
आ जाते हों गे और भी साथी संगी उन से बतियाते हो
बस यहीं घर पर ही अपना रौब जमाते हो
तुम से तो ज़्यदाा हम को यहाँ रहता है काम
दिन भर लगे रहते हैं मिलता नहीं है आराम
अरे हाँ यह खूब आप ने है आज फरमाया
हमारे दफतर से ज़्यादा घर में काम है बताया
दो अंडों का आमलेट, चार कमरों की सफाई
दोपहर को दो रोटी यही है दिन भर की कमाई
इन सब के लिये भी हैं आदमी दो लगाये
तुम्हें तो हर चीज़ मिल जाती है बैठे बिठाये
हमें तो दफतर में हर दम सर पड़ता है खपाना
कभी आर्डर है देना तो कभी है नोट लिखाना
हर बात के लिये पूरा सामान खुद जमाना पड़ता है
आजकल कोई सबआर्डिनेट कहाँ काम करता है
उस पर मीटिंग पर मीटिंग, आते हैं फोन पर फोन
सर खुजाने तक का समय नहीं आराम की कहे कौन
इधर सुननी पड़ती है विधायकों की अनर्गल बातें
उधर सहयोगियों की कुर्सी हथियाने की घातें
तुम क्या जानो क्या क्या मुसीबतें हैं दफतर में
बैठी रहती हो आराम से बस अपने घर में
हाँ हाँ तुम्हें तो लगता है घर में नहीं है कोई काम
बैठो एक दो रोज़ अकेले तो याद आ जायें श्री राम
जैसे बस एक फूँक मारने से हो जाती है सारी सफाई
इस तरह से है तुम ने घर जमाने की बात बताई
गिनो तो पता चले तुम्हारी बात में है कितना दम
पूरे सड़सठ सुविनियर को रोज़ साफ करते हैं हम
कुछ खरीदे थे कश्मीर से कुछ युरोप से लाये थे
किये भारत भर से इकठ्ठे बड़ी मेहनत से सजाये थे
न करें देख भाल तो देखना इन्हें मुहाल हो जाये
हज़ारों का माल हो बेकार, कोई इम्प्रैस न हो पाये
खाना तो तुम्हारे ख्याल में अपने आप बन जाता है
डेढ़ घण्टा मुंडू के साथ घूम कर खरीदा जाता है
जाता हे जब मुंडू बाहर तो काम और बढ़ जाता है
दरवाज़ा बंद होते ही फोन टनटनाने लग जाता है
दौड़ कर आओ ऊपर से फोन की लाज बचाओ
राँग नम्बर कह कर फिर तुरन्त वापस लौट जाओं
बैठे एक मिनट तो द्वार पर घंटी की आवाज़ आई
जा कर देखा तो खड़े थे राम सरन डाकिया भाई
खतों में क्या था बस चंद ब्रोकर्स के इश्तहार
या फिर यैलो प्रैस से छप कर आये हुए अखबार
पुराने कालीन को ले कर कभी कोई हाकर है आया
कभी पड़ौसन ने बर्फ के लिये चपड़ासी भिजवाया
ऊपर नीचे की कवायद करते करतेे ही हो जाते हैं बे दम
और तुम कहते हो कि हम करते हैं काम कम
खैर अभी तो आमलेट लो और दफतर को जाओ
ज्यादा काम करने का पर हम पर रौब न जमाओ
(1989
हमारे वरिष्ठ श्री आर सी जैन की पत्नि ने एक बार एक अन्य कविता सुन कर कहा कि कुछ हमारे काम काज के बारे में भी तो लिखो। उन के निर्देश पर यह कविता लिखी गई)
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