घबराहट
आज पियुश आ रहा है मुझे लेने के लिये - बाप ने बेटे से कहा।
- यह तो बड़ी अच्छी बात है।
- हो गी ही। मुझ से छुटकारा जो मिले गा।
- मैं ने यह कब कहा। मेरा तो मतलब था हवा बदल जाये गी तो आप को अच्छा लगे गा।
- बेटा, मैं ने धूप में बाल स्फैद नहीं किये। बीवी बच्चे सभी को राहत हो गी मेरे जाने से।
- अब आप तो ऐसे ही बात करते हो। क्या कसर रखी हैं हम ने और पियुश ही कौन आवभगत करे गा।
- उसे कुछ नहीं हुआ है। हर बार इसरार कर के ले जाता है।
- और तीन हफते में वापस भी भेज देता है।
- वह तो मेरे ज़ोर देने पर ही, वरना .......
- वरना क्या?
- वह तो मुझे थोड़ी तकलीफ होती हे न ऊपर नीचे जाने में न, इस लिये।
- अब पियुश की भी मजबूरी है। सरकारी क्वार्टर है। पहली मंज़िल पर अलाट हुआ है तो दिक्कत तो हो गी ही। और आप बैठ तो सकते नहीं।
- अब भई, जीवन में और क्या रखा है, किसी से मिलें न तो कोफत तो होती है। पर .....
- पर क्या?
- वहाॅं पर लोग बड़े अजीब हैं, कोई बात कर के राज़ी ही नहीं होता। सब अपने में मस्त हैं। इस लिये ही तो लैटना पड़ता है।
अब दूसरा पहलू देखें।
- हाॅं मनीश, गाड़ी थोड़ी लेट चल रही है। शायद दिल्ली में धुन्ध के कारण और लेट हो जाये।
- चलो, आ तो रहे ही हो। पिता जी तो तुम्हारी राह देख रहे हैं।
- उन का फोन भी आया था। एक घण्टा आगे पीछे क्या। उतावले हो जाते हैं।
- यहाॅं उन का मन नहीं लगता। पीछे महीने ही तो भोपाल से आये थे और अब फिर जाने की ज़िद कर रहे हैं।
- और वहाॅं कौन से खुश रहते है। चार बार नीचे उतरते हैं और हर बार किसी का सहारा चाहिये।
- भाभी कैसे मैनेज कर लेती है, समझ नहीं आता। और यहाॅं यह है कि घर में आराम नहीं पड़ता।
- वह तो उन की आदत ही है।
- छोटा घर है और और बच्चे अब कालेज जाते हैं, उन्हें पढ़ाई के लिये अलग अलग कमरा चाहिये।
- जगह की कमी तो है ही और आजकल बच्चे एक कमरे में बन्द नहीं रहना चाहते।
- केाशिश तो करते हैं।
- अब भाई, अपना ज़माना थोड़ा है। एक कमरे में सात लोग रह लेते थे। अब तो सब को अपना कमरा चाहिये।
- यह मेरी ही बात थोड़ी है। हर घर में यही हो रहा है। हम ने कभी इस के बारे में सोचा नहीं।
- और पिता जी का क्या प्रोग्राम है। अब के कितने दिन रहें गे।
- क्यों, अभी से घबरा गये क्या
- मैं नहीं, घबराहट तो उन को होती है। तीसरे दिन से ही।
- वहाॅं कोई साथी नहीं मिलता न। कह रहे थे हर कोई अपने में मस्त रहता है।
- अब यह तो आज का चलन है। सब के अपनी अपनी मुश्किल है। वह ज़माना गया जब राह चलते को राम राम कर लेते थे।
- उम्र का भी तो सवाल है। अब तो संगी साथी भी एक एक कर जा रहे हैं।
- सही है, अब तो वक्त काटना है। ऐसे में सब्र करना चाहिये। और वह उन के बस की बात नहीं।
- - अच्छा तो शाम को मिलते हैं। अभी तो दफतर का वक्त हो गया है।
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