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kewal sethi

गुमशुदा की तलाश

गुमशुदा की तलाश


(यह कहानी पुरानी है। कितनी पुरानी, यह तो पाठक जान ही जायेंं गे)


हे प्यारे डायल टोन

तुम जहॉं कहीं भी हो लौट आओ।

जब से तुम बिना बताये चले गये हो, तब से घर कर हर एक सदस्य परेशान है।

चारों तरफ चुप्पी छाई है। जब तुम घर पर थे तो आवाज़ें सुनाई देती थीं पर अब हर एक चुपचाप उस ओर देखता है जहॉं तुम रहते थे।

बार बार हम तुम्हारे निवास स्थान की ओर देखते हैं कि कहीं तुम लौट तो नहीं आये।

घर वाले ही क्या, हमारे पड़ौसी भी परेशान हैं। बल्कि हम से अधिक परेशान वह हैं। हमारे रिश्तेदार सब उन से बार बार पूछते हैं कि क्या हमारा डायल टोन, प्रिय डायल टोन, लौट आया है।

पुलिस में भी इत्तलाह करने कीे कोशिश की पर उन का कहना है कि भारतीय दण्ड संहिता में डायल टोन को न सम्पत्ति माना गया है, न ही इन्सान, इस लिये वह रिपोर्ट लिखने को भी तैयार नहीं हैं।

हमारे पड़ौसी का कहना है कि कहीं कुछ करने का नहीं है। डायल टोन कोई दूध पीता बच्चा तो हैं नहीं। खुद ही धूम फिर का आ जाये गा। उस ने बताया कि एक महीने पहले उस का डायल टोन भी चला गया था पर दस दिन के बाद लौट आया।

वैसे उस की यह भी सलाह दी है कि किसी झाड़ फूॅंक करने वाले को बुलाओ तो वह जल्दी भी लौट सकता है। उस ने पता भी दिया है।

पर मेरी हिम्मत नहीं पड़ी। पता सरकारी दफतर का था। अगर डायल टोन वहॉं जा कर छुप गया है तो उसे डूॅंढ निकालने में कितनी कठिनाइ्र हो गी, यह मुझे ज्ञात हैं। पिछली बार जब अपने अवकाश के वेतन की फाईल का पता लगाना था तो कई महीनों तक तलाशने के बाद भी नहीं मिली। वह तो शुक्र है हमारे एक मित्र का जो उसी कार्यालय में था। जब कैण्टीन में चाय पिलाते समय बात की तो उस ने डूॅंढ निकाली। (नोट - चाय के साथ मिठाई भी थी)। पर जिस दफतर का पता पड़ौसी ने दिया है, वहॉं कोई जान पहचान वाला नहीं है। उस के बगैर तो वहॉं घुसने भी नहीं दें गे।

अब बस प्रार्थना ही बची है। सो, हनुमान जी से वायदा किया है कि जब तुम लौट आओं गे तो उस के बाद वाले मंगलवार को उन्हें प्रषाद चढ़ायें गे।

इस लिये इल्तजा है कि इस पत्र को पढ़ते ही लौट आना। हम सब परिवार वालों ओर पड़ोसियों के साथ साथ हनुमान जी भी आप की राह देख रहे हैं।

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