ख्यालों में
कुछ ऐसे भी है जो गिनते हैं उम्र अपनी सालों में
यूहीं खोये रहते हैं बेकार और अर्थहीन ख्यालों में
हुदयहीन हो जाते हैं वह अपने वक्त से भी पहले
पर कुछ ऐसे भी हैं, बस जाते हैं जो हमारी यादों में
जीवन नाम नहीं है कागज़ पर लकीरें खींचने का
न मतलब इस का केवल सांसों का हिसाब लगाने का
इक प्रयोजन लिये दिल में लगे रहते करते अपने काम
खुश रहते मस्त मलंग कर्तव्य पुजारी नहीं सोचते परिणाम
कई आत्मायें रहती परतन्त्र किसी के वश में हो कर
कुछ स्वतन्त्र विचरती हैं फलते फूलते गुलिस्तानों में
कुछ यूॅंहीं खड़े रहते हैं एक सूखे वृक्ष की ठूॅंठ जैसे
उल्लास से भरे हुये कुछ फूल हैं बरसाते ब्याबानों में
बीतते हुये क्षणों को पकड़ कर इक हार बना लो तुम
रंगों से भर दो जो भी तसवीर दे देता है परवरदिगार
कहें कक्कू कवि इक मिशन बना लो इस जीवन को
किश्ती औरों की भी पार लगाओ बन जाओं पतवार
Comentarios