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कोरोनावायरस

  • kewal sethi
  • Aug 20, 2020
  • 1 min read

कोरोनावायरस


हम सोये थे किस दुनिया में, किस ने हमें जगा दिया

हम समझते रहे जीवन है इक सफर का स्थायी सिलसिला

सुबह से शाम तक रफतार का था हमारा जनूनो हौसला

रुकना मौत की निशानी, यह था हमारा पूरा फलसफा

इक वायरस ने आ कर सभी को झंझकोर दिया

जीवन को उलटा कर दिया, इक नया मोड़ दिया

अपनों से दूरी अब मोहब्बत की इलामत बन गई

सड़क पर दौड़ती ज़िदगी जैसे अचानक थम गई

यह धर्म के, यह महज़ब के झगड़े बेमानी हो गये

यह मंदिर, यह मसजिद, यह चर्च बन्द हो गये

हर तर्फ दहशत, हर तर्फ दिखती है आसमानी बला

क्या था, क्या हो गया, कौन कह सकता है भला

अगड़े पिछड़े देशों का भेद अब अर्थहीन है

जो था कल का गुमान भरा, आज मसकीन है

सैंकड़ों में नहीं, हज़ारों में मौतो का शुमार हो रहा

कब किस की आ जाये बारी, कहना दुश्वार हो गया

विज्ञान पर, तकनालोजी पर था जिन का दारो मदार

प्रकृति की इक ठोकर ने कर दिया उन्हें भी शर्मसार

कौन कह सकता है, कब तलक चले गा कुदरत का यह दौर

परेशान है सभी अभी, देखें कायम रहे गा कितने दिन और

कहें कक्कू कवि, यह वक्त भी आखिर गुज़र जाये गा

देखना तो बस इतना है, क्या आदमी सुधर जाये गा

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