चौदह दिन का वनवास
मेरे एक मित्र का भाई है अमरीका में प्रवासी
और था वह मेरा भी दोस्त, हम थे सहपाठी
उसे भारत आना था, यह खबर थी उस की आई
पर उस ने उस के बाद कोई खबर नहीं भिजवाई
मित्र को फोन किया क्या बदला है उस का प्रोग्राम
उस ने कहा, नहीं ऐसे तो कोई नहीं हैं हालात
वह भारत में आ चुका है निश्चित तारीख को
घर तक पहुॅंचना नसीब नहीं उस गरीब को
हुआ यह कि ऐअरपोर्ट पर जब चैक किया
तो उस टैस्ट का परिणाम पासिटिव्ह निकला
लहज़ा उसे चौदह दिन के लिये दिया बनवास
आजकल होटल में ही कर रहा बेचारा विश्राम
आये गा जब, खबर ज़रूर तुम्हें भिजवाऊॅं गा
पर मत सोचना कि तुम से उसे मिलवाऊॅं गा
जानते हो इस मनहूस कोरोना का है यही दस्तूर
मत मिलो अपनों से रहो बस एक दूसरे से दूर
सरकार का हुकुम है चौदह दिन का बनवास
उस को तो करना ही हो गा हमें बरदाश्त
भारत की तो रीत हेै सदा से यह चली आई
वचन निभाओ सरकार का, मिले न चाहे भाई
इस खबर का हुआ मुझ पर कुछ ऐसा असर
कोरोना पर ही बना इस से यह शब्द चित्र
वुहान से निकल कर पूरी दुनिया पर छा गया
यह कोरोना इक अजीब से दहशत फैला गया
बहुत बड़ा बहरूपिया है यह, पूरा नौटंकीबाज़ है
कभी एल्फा तो कभी डैल्टा, कभी ओमीकरोन है
नई नई बीमारियॉं तो आती ही रहती हैं अक्सर
हर तरह की, हर वज़ह की, वक्त बे वक्त
कभी एडस, कभी स्वाईन फलू, तो कभी इबोला
एक से निपटे तो दूसरे ने अपना बस्ता खोला
हर एक का अपना अपना फैलने का अंदाज़ है
कोई मच्छर पर है सवार, कोई गंदगी नवाज़ है
कोई्र हम बिस्तर होने पर हमें घेर लेता है
कोई गाय नहीं पर मैड गाय नाम लेता है
इसलिये इन को रोकने का अपना ही उपचार है
दूर करो वजह को तो जो वास्तव में ज़िम्मेदार है
पर यह कोरोना तो अपने में ही निराला है
पास आने पर झट बनाता अपना निवाला हैं
हवा में ही घुल जाता है ऐसे यह वायरस
सॉंस लेते ही बना लेता शरीर में यह घर
दुनिया में इंसान की आज इस कदर तादाद
दूरी बनाये रखना तो एक दम है दुश्वार
फिर आज कल के परिवहन भी हैं तेज़ो तराज़
घण्टों में कहीं के कहीं पहुूंचा देते हवाई जहाज़
पलक झपकते ही चीन से इटली तक आ गया
फिर सारे युरोप के देशों में ताण्डव मचा गया
इंगलैण्ड और अमरीका भी कितनी दूर थे अब
ब्राज़ील भी और अफ्रीका भी बच सके कब
न अमीर का न गरीब का कोई लिहाज़ है
वास्तव मे ही यह मर्ज़ लाया समाजवाद है
भारत में भी इस बीमारी को तो आना था
यहॉं इस का अपना अजीब से फसाना था
दूर एक दूसरे से रहो यही बचने का है उपाय
न मिलो गे किसी से तो रोग फैलने न पाये
प्रचार प्रसार इस तरीके का अशद ज़रूरी था
पर जल्दी कुछ तड़क भड़क तो मजबूरी था
लहज़ा एक दिन अचानक यह अहलान आ गया
जो जहॉं है वहीं रुका रहे यह फरमान आ गया
बचपन में स्टैचू का खेल खेलते थे हम अकसर
जो जहॉं जैसा है, थम जाये वहीं, था यह नियम
भारत सरकार ने भी था इसे ही अपना लिया
नगरों में गॉंवों में इक सन्नाटा सा छा गया
मोहलत भी नहीं दी परदेसी को घर जाने की
या बाज़ार से कुछ ज़रूरी माल को जुटाने की
स्कूल बन्द कालिज बन्द, बन्द थे सब कारखाने
माल बन्द बाज़ार बन्द बन्द थीे सारी दुकानें
वह जो दिहाड़ी पर करते थे अपना गुजर बसर
छिन गई रोज़ी उन की फिरते थे वो दर बिदर
जब काम नहीं तो फिर देश को ही जाना है
पर रेल बन्द बसें बन्द कोई नहीं ठिकाना है
चल पड़े पैदल ही वह अपने घर की ओर
इधर खाने की फ़िकर, उधर रहने की न ठोर
पर पुलिस हमारे भारत की बड़ी कारसाज़ है
एक डण्डा ही उन का सब मर्ज़ का इलाज है
घर जाने की जल्दी और बीमारी का था खौफ
उधर पुलिस की ज़्यादती मचना ही था शोर
वह जो रेलों को बन्द कर चुके थे दीवाने
उन्हीं को स्पैशल श्रमिक ट्रेनें पड़ी थी चलाने
करोड़ों रोगग्रस्त, लाखों जब मौत के हुये शिकार
कोई दवाई डूॅंढने को सारे ही देश हुये बेकरार
हरइक ने अपनी सोच कें मुतबिक बताया इलाज
पर उधर रोगियों की संख्या बढ़ती रही दिन रात
जब न हो किसी को कोई भी राहत का सहारा
मजबूरी में कुज्जे में भी हाथी डूॅंढता है बेचारा
कोई तुलसी कोई टू डी जी को कारगर बताता था
कोई कोरोनिल के नाम से अपनी दवाई बनाता था
जब इस कदर ज़रूरी हो रास्ता मिल ही जाता है
कोई न कोई पूरा ज़ोर लगा की हल जुटाता है
चीन ने अपना टीका बनाया, रूस ने स्पुटनिक
अमरीका में पीफिज़र, इंगलैण्छ में एस्ट्रोजेनिक
सभी विद्वान हैं सब जगह, है उन में दम खम
भारत भी नहीं है अकल में किसी से कम
कोवास्किन नाम से अपना टीका बना लिया
सीरम इस्टीच्यूट में कोवाशील्ड का नाम चुना
जो एस्ट्र2ेज़ैनिका टीके का ही दूसरा नाम था
नाम कुछ भी हो लेकिन करना उसे काम था
न केवल अपने देश में बल्कि था विेदेश में
चला अपने यहॉं का टीका हर किसी देश में
हज़ारों लाखों की तादाद में लगने लगे टीके
पर नामुराद बीमारी लगी रही फिर भी पीछे
अपना रूप बदल लिया थोड़ा, बन गया डैल्टा
और भी शिद्दत से था यह नया रूप फैलता
लाखों की संख्या में ही रोज़ तरीज़ बढ़ने लगे
एक बड़ी संख्या में लोग इस से मरने लगे
समय पा कर यह अपना खेल खेल गया
मजबूर भारत इसे भी किसी तरह झेल गया
जब संख्या नये मरीज़ों की होने लगी कम
राहत की सॉंस लेने लगे तब सारे ही हम
चलिये यह दौर भी निकल गया किसी तरह
परेशान न हों गे नागरिक इस तरह बेवजा
पर किस को खबर थी बहरूपिया आये गा
नाम रूप बदल कर फिर से यह छाये गा
हर रोज़ फिर तादाद मरीज़ों की बढ़ने लगी
मिली थी जो थोड़ी रहात वह भी घटने लगी
पर शुक्र है कि रूप ओमीक्रोन थोड़ा मेहरबान
लीलता है कम, करता ज़रूर यह परेशान है
जब तक यह बाहर था और था अख्बार में
रहता था जब तक यह बस अददो शुमार में
सिर्फ इसी में थी अपनी तवेोजज्ह महदूद
किस प्रदेश में कितने हुये इस के मकलूब
मृतकों की संख्सा घट रही पर बढ़ रहे मरीज़
कितने बच कर आ गये थे इस से खुशनसीब
पर जब कभी किसी परिचित को पता लगता
दिल को एक धक्का सा था हमेशा लगता
किस किस का नाम गिनाये जो इस में बह गये
कितने परिवारों के कितने सपने क्षण में ढह गये
जब कभी पड़ोस से आती थी किसी की खबर
दिल जाता था कॉंप, दिमाग जाता था सहिर
और आखिर एक दिन वह घर में भी आ गया
गनीमत थी कि माईल्ड था इस का वह हमला
फिर भी परेशानी तो थी कि कितनी देर का कष्ट
तब तलक चुपचाप रह कर देखें इस का असर
कहें कक्कू कवि अपने पर जब बीतती है त्रासदी
तब जाग उठती हैं दिल में दूसरों के प्रति हमदर्दी
दिल्ली 20 जनवरी 2022
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