और कुण्डली मिल गई
- देखिये कपूर साहब, हमारा परिवार तो ज़रा पुराने समय का है। हमें तो कुण्डली मिला कर ही शुभ कार्य करना होाता है। वैसे , आप का बेटा बहुत अच्छा है। पसन्द है हमें।
- मेहता जी, यह तो पुरानी बात हैं आजकल तो लड़का लड़की आपस में तय कर लें तो जीवन सही से गुज़रता हैं।
श्रीमती मेहता - आखिर हमारे बुज़रगों ने कुछ सोच कर ही यह नियम बनाये हैं। अंग्रेज़ी तालीम से यह बदल तो नहीं जायें गे।
- हम ने तो देखा है कि सब गुण मिलाने के बाद भी आपस में बनती नहीं है। उस के लिये तो आपसी रज़ामन्दी होना चाहिये, वही सब से बड़ी बात है। आपस में मिल कर फैसला करें तो ही ठीक है।
- अपना अपना विचार है। यह रही मेरी बेटी की जन्म कुण्डली। आप भी मिला लें। और अपने बेटे की कुण्डली दें तो हम भी मिला लें गे। फिर आगे की बात तो हो ही जाये गी।
- बात जमती तो नहीं है पर आप ज़ोर देते हैं तो भिजवा दूॅं गा। पर अपनी बेटी के तो बुलायें। कम से कम हम देख तो लें।
- माफ करना, वह अभी घर पर नहीं है।
- तो क्या आप ने उसे बताया नहीं था। हम तो बेटे को भी साथ लाये कि दोनों एक दूसरे को देख लें। बात कर लें।
- बताया तो था और उस ने कहा भी था कि वह पॉंच बजे तक ज़रूर पहुॅंच जाये गीं। पता नहीं, कहीं काम पड़ गया हो गा।
- फोन तो कर देती।
- सुबह जल्दी में थी तो मोबाईल भी घर पर रह गया। पर अभी आती हो गी।
- वाह मेहता जी, कुण्डली पर तो इतना ज़ोर है पर इतनी रात गये लड़की के घर न आने पर चिन्ता नहीं है। आधे आधुनिक होने से काम नहीं चले गा। चलो बेटा उठो, आज तो महूरत नहीं है, ऐसा लगता है।
और कपूर, श्रीमती कपूर और उन के बेटे चल दिये।
बीस एक मिनट बीते और दरवाज़े की घण्टी बजी। खोला तो बेटी दिखी और एक और व्यक्ति। बाईक भी दिखी।
- तो आप आ गईं। पॉंच बजे आने वाली थीं। और अब ज़रा घड़ी देखो।
- वह तो पापा, कार रास्ते में बिगड़ गई। क्या करती। फिर इन को फोन किया तो इन्हों ने आ कर गैरज में भेजने का इंतज़ाम किया।
- इन्हें फोन कर बुलाया और मुझे भी फोन कर देती तो पता तो चलता कि हो कहॉं।
- सारी, पापा।
- और यह हैं कौन? एक अनजान आदमी।
- जी, मैं इन का होने वाला पति हूॅं।
- क्या यह सच है पारो
पारो - क्या यह सच है अमित
अमित - तुम हॉं कहो तो सच ही है।
मेहता - वाह, अभी इस की हॉं का इ्रतजार है। वाह। जान न पहचान, बन बैठे दामाद। हो कौन
पारो - पापा, यह अमित हैै, जे पी मार्गन में असिसटैण्ट मैनेजर।
मेहता - अमित? पूरा नाम क्या है। है भी क्या?
अमित - जी, अमित शर्मा।
- बाप का नाम
- जी, राम रतन शर्मा
- दादा का नाम,
- जी, अभिनव प्रसाद शर्मा
- कैसे हैं वह
- जी, उन का दो वर्ष पहले स्वर्गवास हो गया।
- ओह, और दादी?
- जी, वह तो सही सलामत है।
- तुम्हारी दादी मालपुआ बहुत अच्छा बनाती हैं
- जी, आप उन्हें जानते हैं
- जानता नहीं तो मालपुए की बात कैसे करता। राम रत्न और मैं सहपाठी थे। बहुत अच्छे मित्र। उन के घर जाना ही पड़ता था। फिर वह नौकर बन गये सरकार के। इधर उधर भटकते रहे। और मैं व्यापार में यहीं पर डटा रहा। अच्छा, दादी को कहना, हम इतवार को मालपुए के लिये आयें गे। रा रा को भी बता देना।
पारो - पापा?
मेहता - हॉं हॉं, तुम भी चलना। अपना परिचय देने - मैं इन की होने वाली पत्नि हूॅं।
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