top of page
  • kewal sethi

कहते हैं सो करते हैं

कहते हैं सो करते हैं

अगस्त 2021


चलिये आप को जीवन का एक किस्सा सुनाये ।

किस्सा तो है काफी लम्बा, उस का हिस्सा सुनाये।।

कमिश्नर थे और हो गया था एक साल से ऊपर।

कब तबादला हो गा, इस पर थी सब की नज़र।।

बैटा भी कहने लगा कि ठीक नहीं हो रहा काम।

वरना हो जाता अब तक तो जाने का फरमान।।

सरकार के घर देर तो है नहीं हो सकता पर अंधेर।

रैवेन्यु सैक्ट्री नियुक्त हो गये आ गया आदेश।।

पर अगले दिन एक हुकुम और भी था आया।

राष्ट्रपति आ रहे आप के शहर में यह बतलाया।

रुके रहो वहीं पर मत लेना अभी वहॉं से विदाई।

सारा इंतज़ाम देख लेना हो न कोई भी कोताही।।

दिन आया वह शुभ जब राष्ट्रपति का था आगमन।

सब इंतज़ाम हो गया स्वागत में जुट्रे थे सब जन।।

मुख्य मन्त्री, वन मन्त्री आये और भी वी आई पी।

राष्ट्रपति से करें गे मुलाकात, रीत चली आई थी।।

कमिश्नर धूमते, देख रहे सब तरफ कैसा है माहौल।

जेसा सोचा था वैसा ही है न स्थिति पर कट्रोल।।

देखा उलटी दिशा से आ रही थी एक कार।

अेौर बस एक महिला ही थी उस में सवार।।

रोका उसे चालक को कार फौरन वापस ले जाओ।

नहीं तुम्हारे लिये यह रास्ता, दूसरे से तुम आओ।।

पता नहीं था कार में थी बन मन्त्री की बीवी विराजमान।

वन मन्त्री को इस में लगा जैसे हुआ उन का अपमान।।

मेरा रुतबा बड़ा फौज के जनरल से भी हमें बतलाया।

मेरी कार भी हो गी काफिले में शामिल, यह जतलाया।।

बतलाया उन को कि नहीं है ऐसा कोई भी साधन।

नाम हैं पुस्तक में उन्हीं का ही हो गा इस में वाहन।।

रही बात वरिष्ठता की वह देखी नहीं जाती है यहॉं।

कलैक्टर की गाड़ी तो है पर नहीं है मन्त्री की वहॉं।।

मुख्य मन्त्री ने पूछा मेरी गाड़ी का है क्या उस में नाम।

बतलाया उन को गवर्नर की गाड़ी में है उन का इंतज़ाम।।

हस कर बोले बिठला लूॅं वन मन्त्री को नहीं है एतराज़।

हम ने कहा आप मालिक हैं चाहे जिस को लें साथ।। ª

किस्सा कोताह यह कि राष्टपति का दौरा सफल रहा।

वह गये तो और फिर शेष वी आई पी भी हुये विदा।।

पर वन मन्त्री का गुस्सा रह गया फिर भी वैसे का वैसा।

अभी कराता हॅं इन का तबादला, समझते हैं यह कैसा।।

बतलाया चमचों ने तबादला तो पहले ही हो चुका।

अब आप क्या कराओ गे, हम को तो है देखना।।

एक बार ठिठके, फिर बोले समझते क्या हो हमें।

देखना तुम यहॉं से उन को हम जाने ही न दें गे।।

मुख्य मन्त्री ने बात मान ली, रखना था उन को मस्त।

दूसरे अफसर के आर्डर हो चुुके थे कैेसे करें निरस्त।।

अनुभवी थे तरीका यह ही उन की समझ में आया।

रहे उसी शहर में हम, पर पद नया था हम ने पाया।।

(यह किस्सा 1982 का है)



2 views

Recent Posts

See All

लंगड़ का मरना (श्री लाल शुक्ल ने एक उपन्यास लिखा था -राग दरबारी। इस में एक पात्र था लंगड़। एक गरीब किसान जिस ने तहसील कार्यालय में नकल का आवेदन लगाया था। रिश्वत न देने के कारण नकल नहीं मिली, बस पेशियाँ

अदानी अदानी हिण्डनबर्ग ने अब यह क्या ज़ुल्म ढाया जो था खुला राज़ वह सब को बताया जानते हैं सभी बोगस कमपनियाॅं का खेल नार्म है यह व्यापार का चाहे जहाॅं तू देख टैक्स बचाने के लिये कई देश रहते तैयार देते हर

सफरनामा हर अंचल का अपना अपना तरीका था, अपना अपना रंग माॅंगने की सुविधा हर व्यक्ति को, था नहीं कोई किसी से कम कहें ऐसी ऐसी बात कि वहाॅं सारे सुनने वाले रह जायें दंग पर कभी काम की बात भी कह जायें हल्की

bottom of page