कलैक्टर और समाजवाद
(यह कहानी 1967 की है, इसे ध्यान में रखा जाये)
कल्ब में अधिकारियों की पत्नियों की महफिल जमी हुई थी। उन का अपना कल्ब था और जैसा कि कायदा है, श्रीमती कलैक्टर उस की अध्यक्षा होती हैं। एस पी, कार्यपालन यंत्री, डिप्टी कलैक्टर सभी की पत्नियॉं वहॉं थीं। कलैक्टर को ज़िले में आये कुछ ही महीने बीते थे। दो वर्ष पहले ही उन की शादी हुई थी और सात आठ महीने पहले बच्चे ने जन्म लिया था जिसे श्रीमती कलैक्टर अपने साथ लाई थीं। वास्तव में आज की बैठक में वही चर्चा का विषय था।
श्रीमती कपूर ने बच्चे को अपनी गोद में लिया ओर कहा - देखो कितना प्यारा बच्चा है। बिल्कुल अपने बाप पर गया है। वही नैन नक्श।
श्रीपती गुप्ता ने कहा - नहीं जी, मुझे तो लगता है अपनी मॉं पर गया है। उस जैसा ही तो सुन्दर दिख रहा है।
उन्हों ने अपनी ओर से बच्चे के साथ उस की मॉं की भी तारीफ कर दी। एक तीर से दो शिकार। वैसे वह इस मामले में सब से चुस्त मानी जाती थीं। उन के पति श्री गुप्ता की भी यही आदत थी। किसी के तारीफ के पुल बॉंधना और वह गुण उन में भी था। अब किस ने किस से लिया, यह कहना तो कठिन है। खैर।
एस पी साहब की पत्नि श्रीमती शर्मा ने भी बच्चे को अपनी गोद में लिया और कहा - सुन्दर तो है ही पर साथ में देखो कितना होशियार लग रहा है। आगे चल कर मॉं बाप का नाम रोशन करे गा।
श्रीमती गुजराती - बिल्कुल सही कह रही हैं। यह तो अभी से बहुत चुस्त दिख रहा है। बिरवन के होत चिकने पात। ठहरा हुआ, हसमुख। और क्या चाहिये। स्मार्ट।
श्रीमती कलैक्टर से नहीं रहा गया। बेटा उन का, और सारी बात चीत दूसरों की। कहने लगीं - हॉं जी, स्मार्ट तो है। कभी इस ने तंग नहीं किया। रात का जगाता भी नहीं है। मैं ने तो देखा कई बच्चे रोते रहते है पर यह तो हमेशा ही खुशदिल रहता है। समय से सेाना, समय से उठना।
एक ने कहा - क्यों नहीं, हमारे वो कह रहे थे, कलैक्टर हमेशा मुस्कराते रहते हैं। कभी गुस्से में नहीं देखा। वही गुण तो बच्चे में आना ही था।
दूसरी ने कहा - अब झुग्गी झांपड़ी वाला तो है नहीं जो आम बच्चों की तरह बर्ताव करे। आखिर कलैक्टर का बेटा है।
तीसरी ने कहा - इसे भी आगे चल कर कलैक्टर ही बनना है।
चौथी, जो थोड़ा अग्रैसिव्ह थी, ने कहा - कलैक्टर क्यों, इसे तो कमिश्नर बनना है।
होते होते बच्चा श्रीमती खन्ना की गोद में आ गया।
वह भी बच्चे की शान में कसीदा पढ़ने वाली थी।
पर यह क्या?
वह तो कुछ और ही कह बैठी।
अरे देखो, इस ने तो गीला कर दिया।
(यह ज़माना वह था जब हग्गीज़ ने भारत में प्रवेश नहीं किया था)
एक ने कहा - बच्चा है, ऐसा तो होता ही रहता है।
श्रीमती खन्ना को बात जची नहीं। बोलीं - मैं तो अज सब से बढ़िया साड़ी पहन कर आई थी। अब ड्राई क्लीन कराना पड़े गी।
किसी ने कहा - नहीं जी। बच्चे के गीला करने में ऐसा कुछ नहीं होता। यह उम्र तो इनोसैन्स की है। अभी सूख जाये गा।
श्रीमती खन्ना ने कहा - सूखे गा तो भी दाग तो रह ही जाये गा।
एक ने कहा - अरे पता भी नहीं चले गा। अपने को तो पूरा अनुभव है। मेरे सुग्गी ने कई बार मुझे गीला किया।
दूसरी ने कहा - बच्चे सब एक से होते हैं। अमीर गरीब सब के। यह नार्मल है। मेरे साथ भी हो चुका है।
तीसरी ने कहा - कुदरती बात है। कोई जन्म लेते ही थोड़ा बड़ों की तरह बर्ताव करने लगे गा।
श्रीमती कलैक्टर ने कुछ नहीं कहा।
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