कमज़ोर व्यकितत्व
मेरे कंधे बहुत नाज़ुक हैं न तुम उन्हें आज़माओ
रहने दो इन्हें अपनी हालत पर न इन से बोझ बढ़ाओ
करते हैं गुज़ारा किसी तरह क्यों नई बात बताते हो
मत इन्हें ईमान के जनाज़े में साथ ले जाने को बुलाओ
जो है सो ठीक है अपनी जगह पर अभी तक
मत इन पर रख कर बंदूक तुम अपनी चलाओ
मेरे कंधे बहुत नाज़ुक हैं न तुम उन्हें आज़माओ
मेरी ज़ुबान नाज़ुक है फिसल फिसल जाती है
हज़ार समझाता हूं पर यह कहां मान पाती है
देखती है जब कोई चीज़ कायदे के खिलाफ होते हुए
कर देती है बोलना शुरू, ज़रा न यह रुक पाती है
यह बेचारी इतनी सी बात भी नहीं समझ पाती है
मेरी ज़ुबान नाज़ुक है फिसल फिसल जाती है
मेरे हाथ नाज़ुक हैं बार बार रुक जाते हैं
बताता हूं जो लिखने को वह न लिख पाते हैं
जतलाया है मैं ने इन्हें कितनी बार दुनिया को देखो
कैसे चारों इतराफ लोग अपना काम चलाते हैं
किसी फाईल पर इंकार के लफ़्ज़ न लिखते कभी
न जाने क्यों यह दोरुखी नोट नहीं लिख पाते हैं
मेरे हाथ नाज़ुक हैं बार बार रुक जाते हैं
मेरे पांव नाज़ुक हैं उस राह पर नहीं चल पाते
जिस राह पर आज सभी लोग तेज़ी से हैं जाते
कदम बोसी के लिये जाने वालों की कतारें लगीई
उन के राहे कदम में लोग बिछ बिछ जाते हैं
दण्डवत करते पांव छूते लोग काम निकलवाते हैं
इस में कहीं उन के असूल न कभी आड़े आते हैं
मेरे पांव नाज़ुक हैं उस राह पर नहीं चल पाते हैं
मेरा मन नाजु़क है, इस से है बड़ी परेशानी
सब कुछ जानता हुआ भी छोड़ता नहीं अपनी नादानी
आज धर्म ईमान क्या हैं लफ़्ज़ हुए यह बेमानी
चारों तरफ कुंबा परस्ती, रिशवत खोरी और बेईमानी
दुनिया की, ऐशो इशरत की कीमत कब इस ने जानी
उठो तुम भी शामिल हो जाओ छोड़ो जि़द पुरानी
मगर
मेरा मन नाजु़क है, इस से है बड़ी परेशानी
(भोपाल - अप्रैल 1986)
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