कत्ल के बाद
आई जी साहब की प्रैस वार्ता चल रही थी। उन्हों ने फरमाया - आप को जान कर खुशी हो गी कि हैड कॉंस्टेबल मथुरा दास के कत्ल की गुत्थी हम ने चार दिन में ही सुलझा ली है। शौकत और हर दीप को गिरफतार किया गया है और उन्हों ने गुनाह कबूल भी कर लिया है। उन की निशानदेही पर जो चाकू जुर्म में इस्तेमाल हुआ था, वह भी बरामद कर लिया गया है।
एक पत्रकार ने पूछा - क्या लाश मिल गई है।
आई जी ने बताया कि अभी लाश नहीं मिल पाई है। मुलज़िमान आना कानी कर रहे हैं। हम ने मैजिस्ट्रेट से तीन दिन का पुलिस रिमाण्ड मॉंगा है, उम्मीद है कि लाश मिल जाये गी। इस बीच हम ने सब इंस्पैक्टर हरनाम सिंह को उन के बेहतरीन काम के लिये पॉंच सौ रुपये ईनाम देने का फैसला किया है। हैड कॉंस्टेबल खुमान को दो रुपये ईनाम दिया जाये गा और उस के आउट आफ टर्न प्रमोशन के लिये भी सिफारिश कर रहे हैं।
तीन सप्ताह बाद
मैजिस्ट्रेट की अदालत में आवाज़ लगाई गई - सरकार बनाम मथुरा दास हाज़िर हो। मुलज़िमान को पेश किया गया। पर एक और व्यक्ति भी आ गया।
मैजिस्ट्रेट - तुम कौन हो।
व्यक्ति - जी मथुरा दास
मैं. - मथुरा दास कौन
व्यक्ति - हैड कॉंस्टेबल
- थाना
- पिपरिया
- तुम बनखेड़ी गये थे।
- जी हज़ूर
- किस तारीख को
- 16 जून को, हज़ूर
- फिर क्या हुआ।
- जी मैं, तफतीश के बाद पिपरिया लौट आया। वहॉं मुझे इत्त्लाह मिली कि मेरे भॉंजे की हालत नाज़ुक है। मैं उस देखने चला गया।
- बिना किसी को बताये?
- हज़ूर, आखिरी बस छूटने ही वाली थी। उतना वक्त नहीं था कि किसी को बता पाता।
- तुम्हारा भॉंजा मर गया या ज़िंदा है।
- हज़ूर, माई बाप। तीन हफ्ते मौत और ज़िंदगी के बीच झूलता रहा पर बच गया।
मैजिस्ट्रेट (सरकारी वकील से) - यह क्या है।
वकील - सर, मैं तफतीश कराता हूॅं। दो दिन की मोहलत दी जाये।
मैजिस्ट्रेट - ठीक है। परसों तक केस मुलतवी।
शौकत - हज़ूर, हमारा क्या हो गा। मथुरादास तो ज़िंदा है।
मैजिस्ट्रेट - परसों फैसला हो गा कि मथुरा दास ज़िंदा है या मुर्दा। (रीडर से) - अगला केस
(यह कहानी नहीं हकीकत है, पर नाम बदल दिये गये हैं)
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