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kewal sethi

एक रुबाई

एक रुबाई


मैं हो जाऊं बलिहार किसी पर

ऐसा कोई हमारा नहीं दिखता

जिस को देख कर मैं पूरी रात काट दूं

ऐसा कोई सितारा नहीं दिखता

(होशंगाबाद - 1964)

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