एक पुस्तक — कुछ टिप्पणी
एकपुस्तक पढ़ी — टूहैव आर टू बी। (publisher – bloomsbury academic) । यहपुस्तक इरीच फ्रॉमने लिखी है, और इस का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1976 में हुआ था।इसी जमाने मेंएक और पुस्तकभी आई थी — स्मॉल इज़ब्यूटीफुल। इन पुस्तकोंकी विषयवस्तु लगभगएक ही है। विश्व उत्पादनके पीछे पड़ाहुआ है और बहृत्त निगमोंकी इच्छा हैकि अधिक से अधिक लाभकमायें। न केवल यह बल्किलोगों को प्रेरितकिया जाये कि अधिकउपभोग में ही उन कीभलाई है।
आदर्शवादीपुरुषों और महिलाओंकी उन की पुस्तकों की कमी नहींहै परन्तु जोवास्तविकता है, उसपर ये कोई प्रभाव डालनहीं पाए हैं।इस पुस्तक कासार ये है कि संपत्तिबनाने की प्रवृतिको समाप्त कियाजाए या इसे कम कियाजाए। और अपनी आंतरिक शांतिके लिए अधिकप्रयास किया जाए।परन्तुजब पूरा विश्वकेवल जीडीपी केपीछे पड़ा हो तो इसप्रकार की अनुशंसायेंकोई मायने नहींरखती है। लक्ष्यतो सही है, लेकिन चाहेजलवायु संकट हो अथवाप्रकृति का ह्नास अत्याधिकदोहन द्वारा हो, उसपर रोक लगायाजाना कठिन है।मनुष्य की प्रवृतिही बदल जाए, ये अपेक्षा करनाएक कठिन बातहै। मृग तृष्णाहै।
फिरभी लक्ष्य सहीहै इसलिए यहकिताब पूरी पढ़तो ली, और इस परसे एक लेख भी तैयारकर लिया है।इसे प्रकाशित कियाजाये गा परन्तुउसके पूर्व येबताना भी आवश्यकलगा कि इस पुस्तक मेंकी गई अनुशंसायेंपूर्णतया अव्यवहारिक है। पिछले 50 साल में इन का कोईप्रभाव नहीं हुआहै। और अगले 50 सालभी इनका प्रभावनहीं होगा। इसबीच जलवायु संकटके कारण शायदकुछ नगर भी डूब जायोंतथा कुछ और भी परिवर्तनहों। लेकिन जिसनाश के रास्तेपर हम चल रहे हैं, उस में गति ही आएगी। उसको रोकानहीं जा सकता।और दिशा मोड़नेकी बात तो सोंची भीनहीं जा सकती।हाँ, सम्मेलन औरसंकल्प और अच्छेअच्छे विचार प्रकटकिए जाते रहेंगे। गति वही रहेंगी औरविनाश की गति पूर्ववत चिंताजनक हीबनी रहें गी।
पुस्तकके सार की प्र्रतीक्षा करें।
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