एक कविता की चीर फाड़
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविता है
खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झॉंसी वाली रानी थी।
एक ब्रिटिश जनरल ने कहा ‘‘शी वाज़ दि बैस्ट एण्ड दि ब्रवैस्ट आफ दैम आल’’ - वह उन सब में सर्वोत्तर्म तथा सब से अधिक वीर थी। अब यह पता नहीं कि यह रानी झॉंसी की प्रशंसा थी कि अन्य की भर्तस्ना।
जो हो, यह तथ्य है कि उस ने अपना राज्य छिन जाने पर अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह किया। जनता ने तथा सैना ने उस का साथ दिया।
अब देखिये कविता आगे क्या कहती है -
वाकर झॉंसी आ पहुॅंचा था और कविता के अनुसार ज़ख्मी भी हुआ था। कहा है -
ज़ख्मी हो कर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी।
पर अगर वाकर भाग गया था तो झॉंसी क्यों छोड़ी। उस के फिर आने के डर से?
आगे कहा है -
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरन्तर पार।
अब यह बात समझने की हे कि रानी बढ़ी या भागी। झॉंसी उस के आधिपत्य में था। उसे उस ने क्यों छोड़ा। अपनी जगह कौन अपने मन से छोड़ता है। मजबूरी में ही ऐसा होता है। इस से पता चलता है कि रानी झॉंसी को अपने कब्ज़े में नहीं रख पाई। इस कारण भागना सत्य के अधिक निकट है।
अब झॉंसी से कालपी आने का कया मकसद है। कविता में उसे कानपुर के नाना की मुॅंह बोली बहन बताया गया है। इस कारण वह उस ओर ही आई हो गी ताकि उसे कानपुर में शरण मिल जाये।
अब अगला वाक्य देखिये।
युमना तट पर फिर खाई अंग्रेज़ों ने हार।
प्रश्न यह है कि पहली हार अंग्रेज़ों ने कब खाई थी। वाकर के भागने की बात है पर झॉंसी छोड़ना इस के उलट पड़ता है।
अब आगे देखिये -
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार
यह आगे चलने की बात जमती नहीं है। झॉंसी से ग्वालियर जाने का रास्ता कालपी हो कर नहीं जाता। दतिया हो कर जाता है। स्पष्ट है कि झॉंसी की रानी युमना तट पर जीती नहीं थी, हारी थी। इस कारण कानपुर जाने का इरादा छोड़ना पडा़ और ग्वालियर की ओर वह मुड़ गई।
चलिये ग्वालियर पर अधिकार हो गया। सैना भी मिल गई। सिंधिया छोड़ कर भाग गया। अब वहीं मुकाबला करना था किले के अन्दर से। बाहर निकल कर युद्ध करने की क्या ज़रूरत थी। पर वैसी बात नहीं थी। कहा है -
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार
किले में बन्द हो कर मुकाबला नहीं है। खुले मैदान में लड़ाई की बात है।
खैर, बाकी तो इतिहास है। इस कारण ही कहा है -
घायल हो कर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी।
चलिये सिंहनी ही कह देना चाहिये। आखिर लड़ी तो।
Comments