top of page
  • kewal sethi

ऊॅची दुकान फीका पकवान

ऊॅची दुकान फीका पकवान


ए मेरे दस के नोट तू मेरे काम आ न सका

मैं ने पीना चाही थी चाय वह भी पिला न सका

पान खाना चाहा लेकिन

पान वाला तुझे देख कर घबरा गया

क्योंकि लम्बे चैड़े भाषण

ऊॅंचे ऊॅंचे व्यक्तव्य

बहला तो सकते हैं

फुसला भी लेते हैं

पर

भूख प्यास नहीं मिटा सकते

(नवम्बर 1970 - उस समय सिक्कों की कमी हो गई थी। कोई भी दुकानदार बिना सिक्के लिये कुछ देना नहीं चाहता था। नोट और फिर दस का नोट तो टूट ही नहीं सकता था। वैसे आज कल के माहौल में पाॅंच सौ का नोट कहना शायद उपयुक्त होगा। )


1 view

Recent Posts

See All

आज़ादी की तीसरी जंग (18 अप्रैल 2023) बूढे भारत में फिर से आई नई जवानी थी दूर फिरंगी को करने की सब ने ठानी थी। थे इस आज़ादी की लड़ाई में कई सिपहसलार सब की अपनी फौज थी, और अपनी सरकार अपने अपने इलाके थे, उन

याद भस्मासुर की मित्रवर पर सकट भारी, बना कुछ ऐसा योग जेल जाना पड़े] ऐसा लगाता था उन्हें संयोग कौन सफल राजनेता कब जेलों से डरता हैं हर जेल यात्रा से वह एक सीढ़ी चढ़ता है। लेकिन यह नया फैसला तो है बहुत अजी

लंगड़ का मरना (श्री लाल शुक्ल ने एक उपन्यास लिखा था -राग दरबारी। इस में एक पात्र था लंगड़। एक गरीब किसान जिस ने तहसील कार्यालय में नकल का आवेदन लगाया था। रिश्वत न देने के कारण नकल नहीं मिली, बस पेशियाँ

bottom of page