- kewal sethi
ऊॅची दुकान फीका पकवान
ऊॅची दुकान फीका पकवान
ए मेरे दस के नोट तू मेरे काम आ न सका
मैं ने पीना चाही थी चाय वह भी पिला न सका
पान खाना चाहा लेकिन
पान वाला तुझे देख कर घबरा गया
क्योंकि लम्बे चैड़े भाषण
ऊॅंचे ऊॅंचे व्यक्तव्य
बहला तो सकते हैं
फुसला भी लेते हैं
पर
भूख प्यास नहीं मिटा सकते
(नवम्बर 1970 - उस समय सिक्कों की कमी हो गई थी। कोई भी दुकानदार बिना सिक्के लिये कुछ देना नहीं चाहता था। नोट और फिर दस का नोट तो टूट ही नहीं सकता था। वैसे आज कल के माहौल में पाॅंच सौ का नोट कहना शायद उपयुक्त होगा। )