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उठने का एक प्रयास

  • kewal sethi
  • Jul 7, 2020
  • 2 min read

उठने का एक प्रयास


सरदी की एक ठिठुरती हुई शाम

चारों इतराफ धुआँ कर रहा है कोशिश

उठ कर ज़मीन से आसमान को जाने के लिये

लेकिन कमज़ोरों को उठने ही कहाँ देती है दुनिया

बाँध लिया है ज़मीन ने उसे रहने के लिये

अंधेरा गहराता जाता रहा है ज़मीन पर

ऐसे में कोई औरत

साज श्रंगार में लगी है उदास सी

कमाने का इंतज़ाम करने के लिये

और ज़माना खुश है उस की बाट जोहते हुए

अंधेरा गहराता जा रहा है ज़मीन पर

और एक एक कर चीज़ हो रही है गुम

खो रही है उस में अपना वजूद

श्रंगार की रफतार कम थी बहुत

जैसे अब भी थी इंतज़ार में शायद वह

कि कोई रोशनी आ कर उसे छू ले गी

लेकिन अंधेरा है कि लपलपाता हुआ चला आता है

जलाया है ऐसे में इक चिराग किसी ने कहीं

भेदने को अंधेरे को छोटी सी किरण

मगर घिर आया है अंधेरा और भी पास

जैसे कि चिराग के बुलाने पर ही आया हो

एक चिराग के जलने से कभी अंधेरा बुझा है

कहीं एक वेश्या के पुजारन बनने से मंदिर चमका है।

लपक लेती है युवक कल्याण समिति उन को

जो भूलना चाहते हैं अपने माज़ी को

क्योंकि मुस्तकबिल तो इन नौजवानों का है

जिन में कई अरमान, कई जज़बात की तरजमानी है

गिरे हुए उठ कर चल दें यह वाकई बे मानी है

इस लिये वेश्या को निकाल देना ही बड़प्पन है

अंधेरे को मिटाने की कोशिश करना एक लानत है

जो जहाँ है वहीं पड़ा रहे, यही इंसाफ है

युवक कल्याण समिति की सफलता का बस यही राज़ है


(25.3.1981

इस घटना की पृष्ठभूमि है कि उज्जैन में तथाकथित रैड लाईट क्षेत्र में एक मंदिर में एक भूतपूर्व वेश्या ने पुजारन का कार्य शुरू कर दिया था। इस के विरोध में अन्दोलन हुआ जिस में युवक कल्याण समिति अग्रण्य थी। अंत में उस वेश्या को हटना ही पड़ा।)

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