उठने का एक प्रयास
सरदी की एक ठिठुरती हुई शाम
चारों इतराफ धुआँ कर रहा है कोशिश
उठ कर ज़मीन से आसमान को जाने के लिये
लेकिन कमज़ोरों को उठने ही कहाँ देती है दुनिया
बाँध लिया है ज़मीन ने उसे रहने के लिये
अंधेरा गहराता जाता रहा है ज़मीन पर
ऐसे में कोई औरत
साज श्रंगार में लगी है उदास सी
कमाने का इंतज़ाम करने के लिये
और ज़माना खुश है उस की बाट जोहते हुए
अंधेरा गहराता जा रहा है ज़मीन पर
और एक एक कर चीज़ हो रही है गुम
खो रही है उस में अपना वजूद
श्रंगार की रफतार कम थी बहुत
जैसे अब भी थी इंतज़ार में शायद वह
कि कोई रोशनी आ कर उसे छू ले गी
लेकिन अंधेरा है कि लपलपाता हुआ चला आता है
जलाया है ऐसे में इक चिराग किसी ने कहीं
भेदने को अंधेरे को छोटी सी किरण
मगर घिर आया है अंधेरा और भी पास
जैसे कि चिराग के बुलाने पर ही आया हो
एक चिराग के जलने से कभी अंधेरा बुझा है
कहीं एक वेश्या के पुजारन बनने से मंदिर चमका है।
लपक लेती है युवक कल्याण समिति उन को
जो भूलना चाहते हैं अपने माज़ी को
क्योंकि मुस्तकबिल तो इन नौजवानों का है
जिन में कई अरमान, कई जज़बात की तरजमानी है
गिरे हुए उठ कर चल दें यह वाकई बे मानी है
इस लिये वेश्या को निकाल देना ही बड़प्पन है
अंधेरे को मिटाने की कोशिश करना एक लानत है
जो जहाँ है वहीं पड़ा रहे, यही इंसाफ है
युवक कल्याण समिति की सफलता का बस यही राज़ है
(25.3.1981
इस घटना की पृष्ठभूमि है कि उज्जैन में तथाकथित रैड लाईट क्षेत्र में एक मंदिर में एक भूतपूर्व वेश्या ने पुजारन का कार्य शुरू कर दिया था। इस के विरोध में अन्दोलन हुआ जिस में युवक कल्याण समिति अग्रण्य थी। अंत में उस वेश्या को हटना ही पड़ा।)
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