ईरान ने घोषणा की है की अब वह आणविक राष्ट्र है। इस पर टिप्पणी करते हुए इंडियन एक्सप्रेस में लेख है कि यह ईरान की वास्तविक चुनौतिओं का समाधान नहीं है। यह अजीब बात है कि जब हिन्दुस्थान आणविक शक्ति का प्रयोग विद्युत् उत्पादन के लिए करना चाहता है तो यह हमारी समस्याओं का समाधान माना जाता है पर जब ईरान ऐसा करना चाहता है तो यह सही नहीं है। ऐसा क्यूँ ।
कहा है कि वो अपने युवकों को रोज़गार देने की स्थिति में भी नहीं है। तो क्या भारत में सब को रोज़गार मिल चुका है कि वो आणविक शक्ति का प्रयोग कर सकता है। वास्तव में हम ने इस पर सही दृष्टि से सोचना छोड़ दिया है तथा केवल पश्चिम द्वारा बताया गया राग अलापना चाहते हैं। पाश्चात्य देश तो यह चाहते ही हैं कि एशिया के देश हमेशा पिछड़े रहें पर हमें इस में क्यूँ रुचि होना चाहिए।
अमरीका इत्यादि को डर है कि कहीं ईरान आणविक बम्ब न बना ले। अगर वह बना भी लेता है तो उस से क्या अंतर पड़ता है। हम यह मान कर क्यूँ नहीं चल सकते कि ईरान भी उतना ही ज़िम्मेदार हो गा जितना कि पश्चिम के देश हैं। ज़रुरत इस बात की है कि हम अपने मन से सोचें और केवल दूसरों की बुद्धि से सोचना छोड़ दें।
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