आज़ादी की तीसरी जंग
(18 अप्रैल 2023)
बूढे भारत में फिर से आई नई जवानी थी
दूर फिरंगी को करने की सब ने ठानी थी।
थे इस आज़ादी की लड़ाई में कई सिपहसलार
सब की अपनी फौज थी, और अपनी सरकार
अपने अपने इलाके थे, उन में उन की चलती थी
अपने अपने इरादे थे जिस पर जनता पलती थी
लेकिन मानना हो गा एक बात थी सब की समान
सब के दिल में फिरंगी को हटाने का था अरमान
दिक्कत पर एक थी, टिक पाना था नहीं आसान
मेरठ से शुरू हुये पर दिल्ली फतह का था अरमान
बहादुरशाह ज़फ़र को सब ने लिया लीडर मान
गो केवल गज़ल लिखना सुनना थी उन की पहचान
अलग अलग जगह का भी था ऐसा ही हाल
लक्षमी बाई ने झॉंसी से किया जंग का अहलान
पर झॉंसी न टिक पाई कालपी की ओर किया कूच
शायद कानपुर के नाना साहब आ मिलें गे ज़रूर
पर बेचारे नाना तो अपने में ही थे मशगूल
कानपुर न छोड़ पाये न हीं भेज पाये वह दूत
लक्ष्मी आई तब ग्वालियर, सिंधिया गया भाग
पर अंग्रेज़ यहॉं भी आ गये उस के फूटे भाग
लक्ष्मी गई, दिल्ली भी तो विद्रोहियों ने गॅंवाईं
तात्या लेकिल लड़ता रहा अपने तौर पर लड़ाई
क्यों हारे, क्या किया किसी ने कभी इस पर ध्यान
इस भारत ने दौहाई फिर से वही पुरानी दास्तान
रौहिला लड़े अगर तो सिख रहे थे नदारद
मराठो से भिड़ गये अंग्रेज़ों के पक्ष में महार
इस तरह खत्म हुई आज़ादी की पहली लड़ाई
कई वर्ष तक फिर किसी ने हिम्मत न दिखलाई
एक अंग्रेज़ के ही दिमाग में यह तब आया
भारतवायिसों के लिये उस ने दल बनाया
आज़ादी नहीं, कुछ रहमत की थी इल्तजा
अपने देश के बारे में कुछ कहने का सोचा
तीनों लाल बाल पाल थोड़े अधिक थे उतावले
स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार कहने वाले
लेकिल कायरों के इस देश को यह नहीं भाया
जिस ने उठाये हथियार, उस को ही पकड़वाया
फिर बागडोर दल की इक अहिंसा वाले ने धारी
चरखा कभी, नमक कभी, बायकाट की थी बारी
पर इन से अंग्रेज़ी शासन को थी नही ंपरेशानी
क्योंकि किसी विकल्प की नहीं इस दल ने ठानी
जब सिंगापुर बरमा रौंधते हुये पास आ गये जापानी
सुभाष बोस ने आज़ाद हिन्द फौज भी साथ में उतारी
तब जागा अहिंसावादी, दिया उस ने लोकप्रिय नारा
कुछ भी करो या मरो, लेकिन छोड़ो हिन्दुस्तान हमारा
आज़ादी की दूसरी लड़ाई का था इसे नाम दिया
लेकिल नतीजा वही ढाक के तीन पात ही मिला
छह महीने में यह संघर्ष भी पड़ गया था फीका
जापानी भी नहीं बढ़ पाये यह मौका था खुशी का
अमरीका के एटम बम्बों ने की जापान की ऐसी तैसी
पर इस युद्ध के कारण नहीं रही अ्रगेज़ों की हालत वैसी
हिन्दुस्तान क्या, किसी देश को भी पा नहीं रहे थे सम्भाल
उपनिवेशवाद का जैसे आ गया हो तब ही अंतिम काल
पर इस में जाते जाते उन्हों ने ऐसी चाल चली
बनाया अलग पाकिस्तान, दे कर भारत की बलि
अहिंसावादी डर गये खून खराबे का सोच कर
आधा अधूरा न मिला तो ऐसे ही जाये गे मर
करोड़ों हुये धर से बेघर, हर तरफ कयामत थी छाई
ओर लाखों ने इस अफरातफरी में अपनी जान गंवाई
हार थी यह लेकिन जीत का जश्न था मनाया
ऐसे आजादी की दूसरी लड़ाई का अन्त आया
राज मिला ताज मिला, खुश थे सब कॉंग्रैस वाले
और तो कोई था ही नहीं जो गद्दी को सम्भाले
न शासन का था अनुभव न हीे था कोई ज्ञान
वही पुराने ढर्रे पर ही चलता रहा हिन्दुस्तान
दूसरे देशों की नकल पर लिख डाला संविधान
पुराने एक्ट को टीप लिया दे दिया नया नाम
न शिक्षा में, न प्रशासन मे, न पुलिस में नई बात
हॉं रूस की नकल में बना लिये पंच साला प्लान
नाम तो लोकतन्त्र का दिया, रहा एक तन्त्र का रूप
चुनाव का खेल हुआ पर बदला नहीं देश का स्वरूप
अहिंसा वाद के नाम पर देश को करते गये कमज़ोर
समय आया जब अपनी गद्दी बचाने पर रहा पूरा ज़ोर
बीच बीच में जब कॉंग्रेस को सिंहासन नहीं मिल पाया
भूतपूर्व कॉंग्रैसी ने तब तब इस का फायदा था उठाया
एक पक्ष को उभारा उकसाया, दूसरे वाले को धमकाया
इस तरह वोट बैंक पक्का करने का हथकण्डा अपनाया
पर चलता कैसे अनन्त काल तक इस तरह का खेल
दूसरा दल तख्त पर आ पहूॅंचा कर सब बातों को फेल
पॉंच साल तक पालते रहे सिंहासन की मन में उमंग
उस के बाद भी मतदाताओं को न कर पाये अपने संग
अब तो आर पार की लडाई का था ठान लिया
आज़ादी की तीसरी जंग का इस को नाम दिया
दिल्ली विजय के लिये करें कूच सब का अरमान
पर सिपहसलार कौन बने गा इस पर नहीं इत्फाक
हम से बढ़ कर है यहॉं कौन यह पूर्व वाली की गूॅंज,
धूल चटा दी अपने इलाके में मत जाओ तुम भूलं
दक्षिण वाले बोले हमारी संस्कृति पुरानी और महान
इसी लिये हम को मिलना चाहिये दिल्ली का इनाम
एक और गाड़ कर झण्डे अपने इलाके में गये फूल
नाम बदल लिया दल का, कैसे कोई ठहराये हमें दूर
एक और शूरवंीर ने तो इधर उधर देखा भाला
प्रधान म्नत्री को अनपढ़ बतला अपनी डिग्री को उछाला
एक नेता को जाने क्यूॅं हुआ अपनी ताकत पर भरोसा ऐसा
अगला विधान सभा न लड़ने का कर दिया स्पष्ट इरादा
अब तो दिल्ली जाना ही है क्यों रहें पड़े इस कूप में
एक और कहें क्या बाल अपने सफैद किये हम ने धूप में
बहादुर शाह का तब एक ने ध्यान रख कर कहा
दिल्ली में जो पहले था वह ही तो रहे गा सदा
गद्दी हमारी थी, हम को ही तो मिले गी आखिर
तुम ठहरे बाहर वाले, रहो अपने अपने धर पर
यह ज़रूर है बिना तुम्हारी मदद के नहीं हों गे पार
इस का सिला मिले गा तुम्हें यह हमारा कौल करार
अभी तो सब मंच पर चढ़ आपस में हाथ मिलाओ
अपनी ताकत का दुशमन को ज़रा अहसास कराओ
शेख चिल्ली का तब आया कक्कू कवि को ख्याल
खवाब देखते देखते न मारना दूध कटोरे पर लात
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