आरसी का आदमी
कामयाबी जब कभी चूमे कदम तुम्हारे
दुनिया चाहे इक रोज़ बादशाह बना दे
आरसी के सामने खड़े हो आदमी को देखना
और सुनो गौर से कि क्या है वह कह रहा
शोहरत माॅं बाप बीवी के म्याद पर उतरे पूरी
क्या ख्यालात हैं उन के यह है गैर ज़रूरी
आरसी से झलकते चेहरे का पैगाम आखिरी
उस पर ही पूरी मुनहसर है आकबत तुम्हारी
उसे खुश रखो गे तो ज़रूरत नहीं किसी की
वही रहे गा साथ तुम्हारे जब हो सांस अखिरी
जब बढ़ जाये मुध्किलात उसी का सहारा है
वही है इक दोस्त जो हर वक्त तुम्हारा है
इठलाते रहो भले ही वक्त के साथ सदा
थपथपाते रहो अपनी पीठ खुद ही भला
किस्मत में तुम्हारेी हो गे आॅंसू और पछतावा
अगर आरसी के आदमी को दिया जो धोका
(आरसी - मिरर)
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