आखिरी खत
प्रिय शीला
शायद तुम्हें याद हो कि तुम्हारे साथ कक्षा में एक लड़की थी जिसका नाम सोनम था। तो शायद ये भी याद हो कि हमारी कक्षा से एक कक्षा ऊपर एक राजेश नाम का कामार्षक लड़का भी हुआ करता था। लगभग सभी लड़कियां उस पर जान देती थी और उस के साथ मित्रता करना चाहती थी लेकिन जाने क्या सोच कर वह मुझ से ही बात करता था। यह तो तुम जानती ही हो गी कि मेरे से हसीन लड़कियां कॉलेज में कई थीं जिन में तुम्हारा नंबर भी काफी ऊपर आता था। इस के विपरीत मेरे मैं कोई ऐसा आकर्षण नहीं था लेकिन फिर भी राजेश द्वारा मुझ को चुना गया। उस समय मैं नहीं पहचान पायी कि ऐसा क्यों है। और अब जब जान गई हूॅं तो बहुत विलंब हो चुका है।
इन बातों को जाने दो। मैं अब एक गुमनाम लड़की एक गुमनाम शहर में रह रही हूॅं। इसी लिए मैंने इस खत के ऊपर न तो अपना पता लिखा है और न ही शहर का नाम और शायद ये मेरा आखिरी खत भी हो। सिर्फ तुम्हारे नाम नहीं बल्कि पूरी दुनिया के नाम।
जब राजेश का कॉलेज खत्म होने को आया और राजेश का वहॉं रहने का समय समाप्त होने को था तो उस ने मुझ से विवाह की बात कही और ये प्रस्ताव किया कि हम दोनों एक दूसरे शहर में जाकर आपस में शादी कर लें। उस से जुदाई ग्वारा नहीं थी इस लिये मैं तो इस के लिए फौरन ही तैयार हो गई और जो कुछ भी घर से बटोर सकी, ले कर उस के साथ निकल पड़ी।
दूसरे शहर में हम ने अपना जीवन आरम्भ किया और दिन गुज़रने लगे। राजेश ने कोई ऐसा व्यापार शुरू किया जिस में उसे लंबे समय तक बाहर रहना पड़ता था। मेरे सारे पैसे उस व्यापार में खप गये पर फिर भी गुज़ारा ठीक से चल रहा था। यही बहुत था। कभी कभी राजेश को एक दो सप्ताह बाहर रहना पड़ता था लेकिन मैं उस के प्रेम में बस एक सप्ताह साथ रहने को ही पूरा जीवन समझती थी।
एक दिन अचानक सब बदल गया।
फ़ोन वगैरह सब कुछ था। लेकिन क्योंकि मैं घर से भागी हुई थी वो किसी से भी बात नहीं करना चाहती थी और इस शहर में मेरा कोई वाकिफ नहीं था, इसलिए मेरे लिए वो फ़ोन बेकार ही था।
राजेश नहाने के लिये गया था। तभी फोन बज उठा। फोन उठा कर मैं ने हैलो कहा तो उधर से आवाज़ आई - सलमा, मैं इमरेाज़ बोल रहा हूॅं। ज़रा नदीम को फोन देना।
मैं ने कहा - नदीम?
- हॉं पूछना था, हमारे बारे में उस ने क्या फैसला किया।
- रांग नम्बर।
- आप कौन
- मैं सोनम
- सारी, गल्त नम्बर लग गया
मैं पशेपेश में थी। कौन नदीम? कौन सलमा?
जब राजेश नहा कर निकला तो अनजाने में ही मेरे मुूंह से निकल गया - नदीम, इमरोज़ का फोन आया था। पूछ रहा था हमारे मामले में क्या फैसला लिया है।
अब इस की प्रतिक्रिया क्या हो सकती थी। सोचती हूॅं तो उसे कहना चाहिये था। कौन नदीम, कौन इमरोज़। कोई गल्त नम्बर हो गा।
पर उस ने जो कहा, उस ने मुझे चौंका दिया। बोला - इमरोज तो बेवकूफ है। उसे फोन नहीं करना चाहिये था। उसे समझा भी दिया था फिर भी उसके दिमाग में बात नहीं बैठी।
मेरी उत्सुकता बढ़ गई। ज़ाहिर था कि इमरोज़ नाम अपरिचित नहीं था। और ऐसा भी नहीं कि किसी व्यापारी का किसी दूसरे धर्म के व्यापारी से बातचीत न होती हो। तो उसे बेवकूफ कहने का क्या मतलब था। और दूसरी बात यह कि उसे नदीम नाम से भी कोई अजनबीपन नहीं लगा। लगभग सहज रूप से ही उस ने यह नाम सुना और अपनी प्रतिक्रिया दी।
दो एक रोज़ बाद मैं ने दौबारा पूछा कि यह नदीम वाला मामला क्या है तो उस ने असलियत बताई। मैं ही नदीम हूँ। राजेश नाम तो मैं ने वैसे ही रख लिया था दोस्ती करने के लिये।
- और सलमा
- वह मेरी बीवी है। हमें चार तक रखने की इजाज़त है।
- तो, इस कारण ही तुम हफते दो हफते भर बाहर रहते हो।
- उस के साथ भी तो निभाना पड़ता है।
- और मुझे तफरीह के लिये रखा है।
- नहीं, मुझे व्यापार के लिये पैसा चाहिये था और तुम्हीं उस का एक ज़रैया थीं।
- पैसा तो अब खत्म हो गया है।
- तुम्हारे वालिद काफी अमीर हैं, पैसा तो और आ सकता है।
- दो साल से तो खबर नहीं ली और अब यह चाहते हो तुम। वह तो नहीं हो पाये गा।
- तब फिर हमारा साथ भी नहीं हो पाये गा। तुम आज़ाद हो।
- और हमारी शादी
- नकली शादी का क्या मतलब है। कुछ भी नहीं। कोई गवाह नहीं, कोई लिखापढ़ी नहीं। अपने अपने रास्ते अलग हैं।
- और अगर मैं इंकार कर दूॅं तो?
- आज़ादी पाने के और भी तरीके हैं। सोच लो।
अब आज़ादी पाने के और तरीके भी हो सकते हैं। मैं उन के बारे में सोचने लगी। दो एक किस्से मेरी ऑंखों के समाने धूम गये। सूट केस? फ्रिज? या .............?
तुम सोचो गी कि जब ऐसी स्थिति है तो मैं छोड¬ कर क्यों नहीं चल देती।
पर कहॉं? मॉं बाप की इजाज़त के बिना चली आई। दो साल से कोई सन्देश नहीं भेजा। और फिर खाली हाथ आई होती तो मोहब्बत का असर बताती। पर बाकायदा लूट कर आई। इसे लूट ही तो कहा जाये गा।
और यह भी कि पढ़ाई पूरी करने से पहले ही आई। कोई डिग्री नहीं, कोई हुनर नहीं, किसी बात का अभ्यास नहीं। नाज़ों में पली। इकलौती औलाद।
नहीं। वापस जाने का सवाल नहीं। कहीं और ठौर नहीं।
तो?
किसी दिन मेरी खबर अखबार में छपे तो घर पर इत्तलाह कर देना। कहना कि माफी की हकदार तो नहीं पर माफ कर दें।
अलविदा
सोनम
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