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kewal sethi

अन्ना हज़ारे से लोकपाल तक

hope you like it though it is a bit long but then so is the struggle.

(written on a close friend's advice)


अन्ना लीला

11 जनवरी 2012


हिन्दुस्तान का क्या बतायें हाल

हर शख्स जहाँ का था बे हाल

रस्मे रिश्वत का हर सू जलवा था

हर कदम पर वज़न का मुतालबा था

बढ़ती हुई महंगाई से सभी बेज़ार थे

पर क्या करें, मजबूर थे, लाचार थे

उधर बढ़ता हुआ लालच सिर पर था स्वार

पहले सैंकड़ों की बात थी, अब चाहिये हज़ार

हज़ार से भी पेट न भरा लाखों तक बात पहुूंची

लाख भी कम थे फिर करोड़ो तक की चली

एक करोड़ छहत्तर लाख की बात सुन लोग हुए हैरान

कब पेट भरे गा इन का कब हो गी नियत पशेमान

सब ओर लूट मार थी हर कोई तो था बेईमान

मसीहा बनता नज़र जो आता निकलता वो शैतान

कितने हुकमरान बदल डाले, कितने बदले दल

हर कोई गामज़न था उसी पथ पर केवल

इधर रिश्वत, उधर काले धन की थी माया

कितना किस ने कमाया कितना था छुपाया

कर की चोरी तो कब से थी देश में जारी

विदेशों में धन जमा करने की लगी नई बीमारी

लाखों करोड़ों में यह राशि बताई जाती थी

सरकार इस में कुछ करती नज़र नहीं आती थी

हैरान थी जनता कि आखिर किस को वह पुकारे

कौन आ कर उन्हें इस भयानक कष्ट से उभारे

नाखुदा कोई कारगर मिले तो देश का बेड़ा पार हो

मिले कोई पासबाँ अनोखा तो ही हमारा उद्धार हो

तभी इक सितारा हुआ उफ्क पर नमूदार

लपक लिया जनता ने हो कर बेइख्तयार

भ्रष्टाचार विरोधी प्रतीक अन्ना हज़ारे बन गये

एक दम प्रफुल्लता से सब के ही मन भर गये

जन्तर मन्तर पर बैठा जब करने वह उपवास

उस के पीछे खड़े हो गये बॉंध कर कतार

सरकार इस पुरज़ोर समर्थन को देख कर हो गई हैरान

पुरानी चाल चलनी पड़ी बन्द करने को यह अभियान

कमेटी एक बिठा दी करे गी जो लोकपाल पर विचार

तब तक तो हो जायें गे कम से कम छह महीने पार

इस वायदे को लोग कब याद रख पायें गे

नई विपदा में ही बिचार फंस कर रह जायें गे

पर हमेशा का यह आज़माया वार गया इस बार खाली

भूलने को लोग तैयार नहीं थे नहीं था तरकश खाली

लोक पाल समिति बन गई पर प्रश्न था काले धन का

उस पर सरकार की ओर से कुछ भी न आया ब्यान था

बाबा रामदेव ने इस पर रामलीला मैदान में किया उपवास

एक बार फिर जनता जुट गई उस पर कर पूर्ण विश्वास

पर रामदेव इस मैदान में नये थे, साथी भी थे मन के सादा

ऐसी बिसात बिछाई कपिल सिब्बल ने घिर गये रामदेव बाबा

दिन भर तो बात चीत में उलझाया उन्हें देते हुए भुलावा

आधी रात को पुलिस ने उन के कैम्प पर बोला धावा

रात में भेस बदल कर भागने को हो गये वे मजबूर

सरकार से बात मनवाने का सपना हो गया चकना चूर

राहत पाई सरकार ने तो जाग उठा फिर से आत्म विश्वास

अन्ना हज़ारे को भी देख लें गे लगा कर कोई ऐसी ही घात

बातचीत को टालते रहे, कमेटी में करते रहे नाम को विचार

और साथ में करते रहे अपने मन माफिक विधेयक तैयार

तब एक बार फिर अन्ना ने उपवास करने का किया एहलान

रोड़े अनेक अटकाये सरकार ने राह में करते रहे उन्हें परेशान

पर इस से जब बनी न बात तो घर से किया गिरफ्तार

रात को छोड़ने का किया नाटक, जीप भी की तैयार

इरादा था कि रामदेव की तरह सीधे ऐअरर्पोट जायें गे

उन को हवाई जहाज़ में बिठा कर पुणे पहुँचायें गे

पुराना पानीपत की दूसरी लड़ाई का शायद उन्हें याद था

हाथी ले कर भाग गया हेमूँ को और अकबर जीत गया था

बिना सिपाहसलार के उन की सैना कहाँ ठहर पाये गा

एक करें गे हलका लाठी चार्ज भागी भागी जाये गी

काठ की हाण्डी एक बार ही चूल्हे पर चढ़ पाती है

एक ही तरकीब सब जगह तो काम नहीं आती है

अन्ना बैठ गये वहीं जेल में, कहीं जाने को नहीं तैयार

जायें गे तो अनशन करने वरना रिहाई नहीं दरकार

खबर यह चारों तरफ फैल गई जैसे जंगल की आग

हर कोई चल पड़ा इस अन्दोलन में लेने को भाग

अन्ना की लड़ाई अब अन्ना की नहीं थी वह अपनी थी

आर पार की लड़ाई यह है अब तो यही ठनी थी

मुम्बई, चन्नै क्या छोटे नगरों में भी निकल पड़े लोग

जहाँ भी देखो वहीं पर ही 'मैं अन्ना हूँ' का था शोर

इतनी शिद्दत से हो गा अन्दोलन, था नहीं इमकान

फूल गये हाथ पाँव, घबरा गई सरकार हो गई परेशान

विरोधी पक्ष ने देखा अवसर वे सरकार पर पिल पड़े

संसद के अन्दर बाहर हर जगह शासक थे घिर गये

ऐसे में बचने की नहीं सूझती थी कोई भी राह

मान लिया संसद ने जो भी अन्ना ने था चाहा


पर ठहरिये खत्म नहीं हुई है अभी यह दास्ताँ

आगे का हाल भी तो हमें करना है अभी ब्याँ

इसी से सरकार का असली चेहरा सामने आता है

आदी हैं इस रवैये के फिर भी नया नज़र आता है

कभी संसदीय समिति में बात बदलने का प्रयास किया

कभी विरोधियों को फोड़ने के लिये इस्तेमाल किया

आरक्षण करने का पुराना नुस्खा भी आज़माया गया

कभी कम समय होने को जि़म्मेदार ठहराया गया

अन्ना के साथियों की स्वयं भ्रष्टाचार से नहीं दूरी

कुछ सच्चे कुछ झूटे किस्से की की गई मशहूरी

स्वयं अन्ना पर भी सरकारी धन लेने का इलज़ाम

चाल केवल इतनी थी कि उन्हें कर दें बदनाम

पर जनता ने उन की यह कहानी नहीं मानी

अन्ना थे भ्रष्टाचार विरुद्ध लड़ाई की निशानी

लोकायुक्त को ले कर भी चक्रव्यूह रचा गया

राज्य नहीं मानें गे, यह मान कर चला गया

फूट पड़े गी विरोधियों में तो मन मानी कर लें गे

इस दल को या उस को तो परेशानी में डालें गे

सी बी आई को ले कर दर असल असली झगड़ा था

अपने चुंगल से मुक्त कर दें, इस में बड़ा खतरा था

वही तो अपने पास हर मुसीबत में वज़नदार हथियार था

जैसे चाहें वैसा करवा लें, इस पर तो अख्तयार था

इसी में अड़ गये, पर ऐसे में बिल पास होना था दुश्वार

लोक सभा में तो वाकआउट करवा वैतरनी कर ली पार

पर राज्य सभा में उस से भी तो नहीं बन रही थी बात

वहाँ न तो संख्या ठीक बैठ रही थी न ही कोई हिसाब

उधर अन्ना फिर बैठ गये अनशन पर मुम्बई मैदान में

हो गा अंजाम क्या इस का, इस से वह अनजान थे

तबियत ठीक नहीं थी पर पीछे हटना न हुआ गवारा

साथियों की जि़द थी, गर्म लोहे को था अभी ढालना

शायद चाहते थे बिल का श्रेय लेना अपने सर पर

महत्वाकाक्षांओं की हालात से थी कड़ी टक्कर

पर जनता मेें पहले सा जोश इस बार आया नहीं रू बरू

जब संसद में हो रही हो बहस, क्यों करें अनशन शुरू

दो दिन में ही अन्ना समझ गये बदला बदला सा है निज़ाम

छोड़ दिया अनशन, भविष्य की सारी कार्रवाई को दिया विराम

राज्य सभा में बहस चलती रही हो रही तकरार

नहीं लगता था कि बचने की सूरत विरोधी थे तैयार

तब तुरुप का पता चला गया विधेयक फाड़ा गया

शोर खूब मचाया गया, समय यूँ निकाला गया

और अंत में संवैधानिक संकट की बात उठाई गई

यूँ राज्य सभा के विपरीत मत से जान छुड़ाई गई


इस में आश्चर्य कुछ खास नहीं है यह तो होना ही था

जब इतना हो दाँव पर कैसे तो इस को नकारना ही था

कैसे समाप्त कर दें हम देश से गायब भ्रष्टाचार

इस पर ही है जब राजनैतिक जीवन का दारो मदार

हो गया काला धन सरकारी तो चुनाव कैसे लड़ पायें गे

जन लोकपाल को सब अधिकार दे कर कैसे बच पायें गे

सी बी आई नहीं रही अपने पास तो क्या पायें गे

अपने सभी साथियों से फिर जेल में ही मिल पायेंं गे

इतने तो मूर्ख नहीं हैं अपने पाँव पर कुल्हाड़ी लें मार

बहस करा लो चाहे जितनी उस से नहीं इनकार

महिला आरक्षण का मुद्दा भी टलता आ रहा कब से

भ्रष्टाचार पर काले धन पर रोक लगा दें कैसे झट से


अन्त नहीं इस अफसाने का, गाड़ी ओर आगे जाये गी

कुछ दम ले ले जनता फिर से वह झण्डे तले आये गी

फिर हो गा अन्दोलन, सरकार से फिर लें गे पनगा

यह तो जीवन का नियम है इस से क्यों इतना डरना

नहीं चैन से बैठें गे न ही बैठ पाये गी यह सरकार

कक्कू कवि से कविता लिखवा लो चाहे कितनी बार


(11 जनवरी 2012 श्री लाल बहादुर शास्त्री को नमन के साथ)

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