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अधिकार

kewal sethi

अधिकार


कोई रबड़ की मोहर तो हैं नहीं राज्यपाल

उन का अपना है रुतबा, अपना है कमाल

वह तो राज्य के मुखिया है, राज्य उनके नाम से ही चलता है

है कोई सरकारी आदेश जो बिना उन के नाम के निकलता है

क्या हुआ अगर मंत्रीमंडल के परिमाण पर वह नहीं बोलते

काग्रैस और दूसरों को वह कभी एक तराज़ू से नहीं तोलते

सदस्य अपात्र घोषित होते हैं तो उन के लिये अदालत है

नियम विरुध्द बरी होता है कोई तो यह उसकी अबादत है

सरकार का इकबाल है, उस को कायम रखना है

गलत सही का निर्णय तो बस दिल्ली का अपना है

लेकिन यह नहीं कि उन्हें अनदेखा किया जाये

किसी बात के लिये उन से पूछा ही न जाये

इसी लिये उन्हों ने अपना जलवा दिखा दिया

बारह तारीख के सत्र का प्रस्ताव ठुकरा दिया

सदस्यो से यह अन्याय उन से न सहा जाये गा

उन्हें पूरे दस दिन का नोटिस दिलाया जाये गा

यह मुख्य मंत्री को उन की हैसियत दिखलाये गा

अब भला कौन राज्यपाल को मोहर कह पाये गा


केवल कृष्ण सेठी

7. 9. 1995

(मन्त्री मण्डल ने एक सप्ताह के नोटिस पर विधान सभा का सत्र

बुलाने की घोषणा की थी पर राज्यपाल नहीं माने। उसी पर यह कविता)

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