- kewal sethi
अधूरी कहानी
अधूरी कहानी
कहानी शरू कैसे हो
(1968 में लिखी गई पर पूरी नहीं की गई)
मैं रणजीत कल्ब में बिलिडर्स खेल रहा था। डा. सिंहल, डा. शर्मा, श्री लल चुंगलियाना एवं अन्य साथी भी कलब में थे। शाम का करीब आठ बजे का समय हो गा। दिन भर की थकान मिटाने के लिये एकाध घण्टा इस कल्ब में बिता कर और अपनी दिन भर की आपबीती सुना कर कुछ गम कम करने, कुछ खुषी बॉंटेने का कार्यक्रम किया करते थे। वैसे उस दिन कोई विषेश बात नहीं हुई थी। वही रोज़मर्रा के मरीज़, कुछ छोटे से आपरेशन, दफतर का काम और लिपिकों को डॉंट फटकार। आठ दस साल की सेवा में यह एक रोज़ का चक्कर बन गया था। डाक्टर हैं तो फोन तो आते ही रहते थे। कभी खरगोन से, कभी इंदौर से, तो कभी भोपाल से। कभी कभी दूसरे डाक्टर लोग भी सलाह लेने के लिये भी फोन करते धे। इसी लिये जब घर से चपड़ासी ने आ कर बताया कि बड़वाह से फोन आया है तो कोई विषेष बात नहीं थी। कुछ अटपटा नहीं लगा। मेरे 77 प्वाईट बन चुके थे और सिर्फ 23 की ज़रूरत थी। सोचा कि यह भी पूरे कर के फोन करने जाऊॅं। पर चपड़ासी ने कहा कि बहुत आवश्यक फोन है और तुरन्त आने को कहा है। लहज़ा अपना क्यू लाल चुंगलियाना को थमा कर मैं घर की ओर चला जो बगल में ही था।
बात कर के लौटा तो साथियों ने पूछा कि किस का फोन था और ऐसी क्या अरजैंट बात थी। उस समय तक बिलिडर्स तो खतम हो गया था और हम चाय के लिये मेज़ के चारों तरफ बैठे थे।
मैं ने बताया कि बड़वाह से फोन था। आपरेटर को कहा मिलाने के लिये। आपरेटर जान पहचान का ही था। कभी कभी दवाई लेने और कभी चिकित्सा प्रमाणपत्र बनवाने के लिये आपरेटर आते ही रहते थे। इस लिये कुछ अहसान मानते थे। आपरेटर ने तुरन्त इंदौर से सम्पर्क स्थापित किया और वहॉं से बड़वाह के लिये। दो मिनट में सम्पर्क हो गया।
मैं डा. शर्मा बोल रहा हूॅं - मैं ने कहा।
उधर से आवाज़ आई - आप फौरन यहॉं चले आईये। मेरी जान को खतरा है।
आवाज़ नसवानी थी। मैं समझ नहीं पाया कि फोन किस का था। फिर से कहा -
मैं डा. शर्मा बोल रहा हूॅं। आप कौन हैं।
उधर से फिर पहले वाला वाक्य दौहराया गया। मुझे ऐसा लगा कि फोन करने वाली कुछ कुछ सुबक भी रही है। मैं चक्कर में पड़ गया। मैं ने कहा - आप हें कौन।
मैं गीता सोनी बोल रही हूॅं। आप फौरन चले आईये।
पूछने पर उस ने कहा कि मैं बात फोन पर नहीं बता सकती।
श्रीवास्तव - कट कट, एक मिनट, पहले यह बताईये कि इन गीता सोनी की उम्र क्या हो गी।
शर्मा - यही कोई 25 26 साल
श्रीवास्तव - मिस है या मिसेज़
शर्मा - अभी तो मिस ही है।
श्रीवास्तव - वाईटल स्टैटिस्टिक्स
चौबे - भई, मिस है। यही काफी है।
सिंह - देखो भाई, जब कहानी लिखी जाती है तो यह सब बातें धीरे धीरे सामने आती हैं। कोई गणित का प्रश्न तो हैं नहीं कि सब वैरीएबल की परिभााषा कर दी जाये। पहले से सब बात बता देना कहानी लिखने की कला के खिलाफ है। वैसे शायद यह गीता सोनी अभी इस ज़िले में नहीं है।
श्रीवास्तव - वह तो मैं जानता हूॅं। पर पाठक पहले यह देखना चाहता है कि कहानी में कोई दम है कि नहीं। अब मान लो स्टैटिाटिक्स 38-36-39 हैं तो आगे की कहानी कोई मायने नहीं रखती है। पाठक पढ़े गा नहीं।
चौबे - इसी लिये तो यह बताना नहीं चाहिये। ससपैंस बना रहता है।
श्रीवास्तव - तो इस का मतलब है कि मैं ने जो स्टैटिसटिक्स बतायें हैं, वह सही हैं।
शर्मा - नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं है। यह जानकारी काफी फेवरेबल है।
सिंह - तो फिर कहानी आगे बढ़ाई जाये।
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