अंजली
कुछ लड़कियॉं पागल होती हैं, मैं अपने मित्र को बता रहा था।
- क्यों, क्या हो गया। कौन सी पागल लड़की की बात हो रही है।
- अब अंजली को ही लो।
- एक मिनट, यह अंजली है कौन। कहॉं मिली थी, क्या है।
- मेरे सहपाठी की छोटी बहन है।
- और कब से जानते हो, स्कूल के दिनों से ही या बाद में।
- सब्र करों, पूरी बात तो सुनो। ग्यारहवीं में हम साथ थे। पास में ही घर था। आना जाना लगा ही रहता था। बहन से भी बात चीत थी ही।
- और तुम्हें उस से इश्क हो गया।
- बेवकूफ मत बनो। वह सहपाठी को भैया कहती थी और मुझे भी भैया कहने लगी।
- जब कि तुम सैंया होना चाहते थे।
- सब्र, सब्र। उस वक्त तो रोमांस का ख्याल ही नहीं था दिल में। सिर्फ पढ़ाई। उम्र ही क्या थी। और उस की उम्र - नौ या दस साल की हो गी। तो खैर, वह दिन बीत गये। फिर नौकरी लग गई। इस शहर में आ गया।
- फिर?
- एक दिन अंजली घर पर आ गई। उस के भैया ने बता दिया हो गा। उस ने इसी शहर में कालेज में दाखिला ले लिया था।
- देखने में कैसी हे अंजली।
- मिला दूॅं गा, खुद ही देख लेना। तुम तो सुन्दरता के पुजारी हो। वह पूजा योग्य ही है।
- ज़रा लेट हो गया। मैं ने लड़की पसन्द कर ली है। पर तुम बताओ, तुम्हारी बीवी को कैसा लगा।
- अब दोस्त की बहन है तो मेरी भी बहन ही हुई न, अच्छा ही लगा। और वह अब आती जाती रहती है। जब होस्टल का खाना नहीं जमता तो हमारे यहॉं ही खा लेती है।
- अब तक तो ठीक है पर यह पागल वाली बात कहॉं से आ गई। कब हो गई वह पागल।
- अपना वह मित्र है न शीरीश।
- वही, जो बहुत बोलता है। चुप कराना भी मुश्किल होता है। पर आदमी है जानदार। क्या रेंज है उस के ज्ञान की।
- बस उसी ज्ञान पर तो अंजली फिदा हो गई।
- अब शुरू हुई न रोमांस वाली बात। फिर क्या हुआ। दोनों चोरी छुपे मिलने लगे।
- चोरी छुपे क्यों? तो उस दिन जब वह मेरे यहॉं बतिया रहा था तो अंजली भी आ गई। बातों के दौरान शीरीश ने बताया कि वह अच्छा ज्योतिशी भी है। मेरा हाथ देख कर वह आयें शायें बकने लगा। मेरा कैरियर उस से छुपा थोड़ा ही है, इस लिये सब बात सही सही बता दी। और अंजली उस का लोहा मान गई। पागल कहीं की। उस ने भी अपना हाथ बढ़ा दिया पर शीरीश को कहीं जाना था, इस लिये फिर कभी कह कर निकल लिया।
- चलो, बच गई।
- बची कहॉं। ज़िद करने लगी कि मुझे मिलवाओ। मिलवाना पड़ा।
- फिर
- हाथ दिखाया। अच्छी अच्छी बातें सुनी। उस की लाईब्रेरी देखी और एक किताब भी मॉंग कर ले गई। नाम था - किस मी अगेन, स्ट्रेंजर।
- दौबारा मिलने का बहाना। तो रोमांस बढ़ गया। और बढ़ता ही गया।
- इसी लिये तो कहा कि लड़कियॉं पागल होती हैं। किस बात पर मर मिटें गी, मालूम नहीं।
- अंजाम क्या हुआ।
- शीरीश का तबादला हो गया। फिर बात मेरी तरफ से आई गई हो गई। मुझे जानने का शौक भी नहीं था। बस एक बार शीरीश ने एक प्रेम पत्र दिखाया था अंजली का। क्या भाषा थी। पागलपन का सही नमूना। पर उसे क्या पता था कि शीरीश की सगाई हो चुकी है और वह भी अपनी प्रेमिका से।
— और अंजली मिली क्या।
— मिलती तो रही पर फिर कभी इस के बारे में बात नहीं हुई। मैं ने बताया न कि मुझे जानने का शौक नहीं था। इस लिये न मैं ने पूछा, न उस ने कभी बात की।
- अंत भला, सो भला। पर यार, इस में पागलपन की क्या बात है। जोड़ियॉं ऐसे ही बनती है। अचानक। किसी इतफाक से। अब मुझे देखो। शताब्दी में सफर करते समय साथ साथ की सीट मिल गई। बस इतना ही। हो सकता है शीरीश की सगाई नहीं होती तो अंजली तम्हारी बहन नहीं, भाभी होती। पर कहती तुम को फिर भी भैया ही। हॉं, अगर इस के नाम पर शोषण किया गया होता तो पागलपन कहा जा सकता था। उम्मीद है, ऐसा नहीं था।
- क्या पता।
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